– जयंती पांडेय
रामचेला बाबा लस्टमानंद से सवचले कि, हो बाबा, ई कालाधन के करिये काहे कहल जाला गोर चाहे गेहूँआ काहे ना कहल जाला ? हम त कव हाली अपना बगली के नोट बड़ा धेयान से देखनीं कि एहमें से कवनो करिया बा का ? लेकिन कवनो करिया ना लउकल. आखिर एकरा पीछे कवन दिमाग बा. का ई रंगभेद ना ह ? आखिर एकरा पीछे कवन दुराग्रह बा.
बाबा कहले ई करिया रंग का प्रति अंगरेजन के दुराग्रह ह. जवन धन गलत ढंग से कमा के आ लुकवा के रखल जात रहे ओकरा के ओकनी का ब्लैक मनी कह देले सँ. बाद में जब एकर हिन्दी बनल त ब्लैक के करिया कहे लागल लोग.
लेकिन बाबा, रामचेला कहले, हमनी का त अंगरेज ना हईं सँ. फेर हमनी का काहे अइसन बोलऽतानी सँ ? अंगरेज त हमनी के दुश्मन रहले सँ त काहे ना ओकनी से दुश्मनी के कारण एकरा के गोर धन कहल जाला ? इहे ना काला धन जब विदेशी बैंकन में होला त करिया रहेला आ अपना देश में ढुकते ऊ साफ सुथरा हो जाला. ई नोटवन के रंग कइसे बदल जाला ? आ जब नोट वोट खातिर दीहल जाला भा सवाल पूछे खातिर दीहल जाला त ऊ त काला धन ह, ओहि से देश के देहि पर कवन असर पड़े के बा.
बाबा कहले, कुछ बड़का लोगन के कालाधन से बड़ा प्रेम बा एहि से एकर नांव नइखे बदलल जात. प्रेम अइसने चीज ह कि गोर भभूका राधा के करिया कृष्ण से प्रेम हो गइल. सुनल जाला कि मजनू के लैलो करिया रहली. काला धन के बारे में सब केहू जानेला लेकिन ई बतावल मुश्किल बा जे औचक में तहरा के काला धन भेंटा जाउ त चीन्हबऽ कइसे. एहि से जे एकरा बारे में सुनेला मुसुकिया के ओहिजा से सरकि जाला. चाहे ऊ नेता होखो भा अफसर. काला धन के निशानी इहेह कि महँग गाड़ी में घूमेला आ बड़हन कोठी में रहेला. ई लोगन पर तबले सरकार के किरपा बनल रहेला जबले ऊ सरकार के नाराज ना करे. काला धन का बारे में तू ढेर मत सोचीहऽ. बस एतना जान ल कि एहसे प्रेम करला पर खतरा बेसी बा.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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