आजु अचानके ई सवाल उठ गइल हमरा मन में कि का होखी अगर कवनो जज पगला जाव. का इन्तजार करे के पड़ी कि कवनो डॉक्टर ओकरा के पागल साबित कर देव ? बाकिर कवना डॉक्टर के औकात होखी कि ऊ कवनो जज के पागल बता देव ? आ एह हालत में ऊ जज कबले मुकदमन के सुनवाई कर सकेला आ अपना मन मर्जी के फैसला सुना सकेला ?
अगर कवनो जज कहे कि तू जमानत मँगबऽ चाहे ना हम तोहरा के अन्तरिम जमानत दे सकिलें त रउरा कवनो आपत्ति कइसे कर सकिलें ? आखिर जब संविधान में कुछ ना लिखला का बावजूद एगो भा कई गो जजन के मंडली नया जज के बहाली कर सकेला, आपन तनखाह आ सुविधा तय कर सकेला त ऊ कवनो अपराधी के बिना मंगले जमानत देइए दी त कवन बड़ बात ?
आखिर पुरान जमाना से कहाउत चलल आवत बा कि समरथ के नहीं दोष गुसाईं त ई जाँच एजेन्सियन के का औकात कि कवनो समरथ के जेल में डाल देव ! खास कर के अगर ऊ अपना के अराजक होखे के दावा करत होखे. आखिर जजी से बड़हन अराजक कहवां भेंटाई ? जज कानूनी फैसले ना करे कानूने बना देला. आ ओकरा बनावल कानून के लागू करवावेला ना त संसद के मंजूरी चाहीं ना राष्ट्रपति के. जज जवन कह देव उहे कानून होला आ ओकरा कहल कवनो बात के विरोध ना होखे के चाहीं. हँ कवनो बड़हन वकील ओकर बेइज्जति कर देव त कौड़ी के इज्जत लेबे ला कौड़ी के जुर्माना लगा के ओकरा के त छोड़ल जा सकेला बाकिर जे कवनो आम आदमी अइसन हिमाकत करी त ओकरा के छठी के दूध इयाद करावलो जजी के जिम्मेवारी होला.
एहसे अगर कवनो जज फैसला सुना देव कि चुनाव का बेरा नेता के, जोतनी-बोवनी-कटनी-दँवनी का बेरा किसान के, कवनो कंपनी के मुख्य अधिकारी के, दौरीदो-कान करे वाला के, परिवार के भरण-पोषण करे वाला के जेल में डालल गलत होखी काहे कि ऊ साबित कर दी कि परिस्थिति असाधारण बा त रउरा शिकायत कइसे करब.
हम सुप्रीम हईं आ सुप्रीम का खिलाफ बोले के आजादी लोकतंत्रो ना देव.
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