– बिनोद सिंह गहरवार
जतने मुँह ओतने दावा,बुझाते नइखे केकर बा हावा. केहु कहऽता अबकी बेरा चार सौ पार. केहु कहऽता डेढ़ सौ प ढ़ेर. केहु कहऽता, केहु के जीत केहु के हार बाकिर कसहुँ जीत जाय परिवार. केहु के पार्टी के नाक के सवाल बा त केहु के परिवार के साख दाव प बा. साख बचावे खातिर लोग गाँव-गाँव , मोहाला-मोहाला के चउगेठा मार रहल बा. एह में केहु के लुक-घाम, हवा-बयार के चिंता नइखे. सभे घामे-घामे बंगड़ेड़ा भइल फिरता. केहु जात के नाम प, त केहु धरम के नाम प, त केहु नोकरी के नाम प, त केहु बिजुली, पानी, दवा-दारु, फ्री फंड के नाम प जनता प झटहा चला रहल बा.
भाई पाँच साल के खेती ह. आई आम चाहे जाई झटहा. अपना से कवनो चुक ना होखे के चाहीं. आउर चीझ त साल छव महीना प आ जाला बाकिर एम. पी., एम. एल. ए. बने के चानस पाँच साल का बादे आवेला. एह से सभे सोचता कि चलs दू महिना के बात बा. गदहो के बाप कहे में कवनो हरज नइखे. एकरा बाद फेर लोग के बाप बनिए जाए के बा. बाप त छोट-मोट बात भइल. बाप त चुनाव जीतते लोग बन जाला. गलती से कहीं मन्त्री पद मिलल कि लोग सभे के माईबाप बन जाला.
गईल माघ अब उनतीस बाकी. संउसे हाथी निकल गइल बा खाली पोंछ अंटकल बा. सात चरण नाँव के बा. साँच पुछीं त चुनाव दुइए चरण के होला. चुनाव के बेरा नेता जनता के चरण में रहेला आ चुनाव होते जनता नेता के चरण में.
फिलहाल सभे आखाड़ा में कुरछाड़ रहल बा. आपन-आपन दाव चला रहल बा. को बड़ छोट कहत अपराधु. केहु जेल से निकल के पंजाब हरियाणा दिल्ली डगडगा रहल बा. केहु रोग-बलाय के लाथ क के जेल से निकल के छपरा में छपक रहल बा. केहु गवनई-बजनई छोड़ के घामे-घामे गली-गली के झिटका फोर रहल बा. रिंकिया के पापा के हीं.. हीं…ही.. हँसल गायेब हो गइल बा. बाकिर सभे आपन बाढ़ मना रहल बा.
बखोरन काका एको चुनाव ना छोड़स. उनकर पर चले त राष्ट्रोपति के चुनाव लड़ जइहें. अबकियो दाव अजमा रहल बारन. उनकर चुनाव चिन्ह बैगन छाप बा. लोग से कहत बारन, “किया त बैगने के सिर प ताज रहेला ना त बदशाहे के. अबकी जनता हमरा सिरे ताज बान्हे के मन बना लेले बा. “हम उनकर कॉन्फिडेंस देख के शाहेब काका से पूछनी, “काका हई देखऽतानी, इनका के आपन गोतिया-पटिदरवो ओट नइखे देत बाकि इहो चुनाव जीतत बारन.” साहेब बाबा अनुभवी आदमी रहन, कहलन, “चुप ससुरा, जुआड़ी ताके आपन दाव!”
0 Comments