– जयंती पांडेय
बड़ा ढेर दिन के बाद रमचेलवा फेरू लउकल. रमचेलवा के संगे-संगे दो-चार जाना अउर रहलें. बुझाइल कि रमचेलवा ए घरी नेतागीरी करे लागल बा. बाकी अपना गुरु लस्टमानंद के देख के रमचेलवा मानो गोड़े पर ढह पड़ल. सांच कहीं तऽ बड़ा नीक लागल. अरे! ए घरी केहू चेला नइखे बने के चाहऽत. सबे गुरु बने खातिर बेचैन बा. जहां देखीं उहवें राजनीति. सबे एक-दूसरा के टांग मारे अउर टांग खींचे में ओस्ताद बा. अइसना में भला केहू चेला कहावल पसंद करो कइसे. बाकी रमचेलवा के अइसन निहुरल पोज देख के लस्टमानंद के जिअरा मानो जुड़ा गइल. लस्टमानंद आपन गुरुआई देखावे खातिर पूछलन, बताव रमचेलवा, एतना ढेर दिन बाद कइसे गुरु के याद आइल. अउर ए घरी का करऽताड़ जउन गुरु के दरशन करहूं नइख आवत. रामचेलवा के चेहरा पर मानो पंचलाइट चमक उठल. चौबीस इंची के होंठ चियार के कहलस, गुरु जी अइसन भला हो सकेला कि कउनो बड़हन ममिला हो अउर राउर चौखट छोड़ के हम कहीं चल दीं. अरे, ए घरी गुरुजी वोट के बहार बिया. रउआ तऽ एकरा ले ऊपर उठ गइल बानी. भोले बाबा निअर सबके ‘तथास्तु’ कह देनीं बाकी हमनीं के तऽ बाजार बनावे के पड़ेला. आखिर एही घरी तऽ थोड़ा बहुत खेत जोताला. ए घरी कंडीडेंट लोग बड़ा होशियार हो गइल बा. पेट्रोल मोबिल गाड़ी में अउर पेटे में भरवा देता लोग अउर छोड़त नइखे. संगे-संगे गांवें गांवे दउड़ावऽता लोग. का बतावल जा गुरु जी पहिले के जमाना केतना बढ़िया रहे. कंडीडेंट घरे बइठल हाथे में सब कुछ थमा जाये लोग. अउर बस मजा आ जाए. का बतावल जाए ..‘हर हेंगा में जइसन-तइसन पगुरी में रंथ’ कहावत एकदमे सांच हो जाए. बाकी ए घरी तऽ दउड़ा मुआवऽता लोग. चेलवा के एतना भाषण भला गुरु से खेपावे. कहलऽन- ई, बताऽव, रस्ता कइसे भुलक्ष्ल?
माथ खजुआवत रमचेलवा अब असली टापिक पर आइल. कहलस – गुरुजी, इ जौन हमरा संगे आइल बा लोग, बड़ा परेशान बा लोग. इनकर लईका के थोड़ दिन पहिले बिआह भइल. लईकी वाला जउन सकरले रहे तउन देहलस नाहीं. तिलका के बेरा कहलस के आधा दे तानी बाकी बिआह के पहिले कुल दे जाइब जा. जब बिआह के दिन नियराये लागल तब बहाना करे लागल सब कि पट्टीदारी में एगो एक्सीडेंट हो गइल बा. रोगी के ले के बनारस भागे के पड़ऽता. ओहिजा से लउट के सब कुछ दे जायब जा. बाकी बिआह के दिन ले उ सबे ना आइल. इहे बहाना बनावत रह गइल कि बनारस से अबे पहुंचऽतानी जा. रउआ सबे बरात ले के आईं लोग, जउन जउन सकारल बा, सब दिआई. पहिले बरात में जनवासा पर रखवा लेब लोग तब दुअरा बरात ले के पहुंची लोग. हमनी के जुबान खाली ना जाई. विश्वास में इ लोग बरात ले के पहुंचियो गइल लोग. लईकी वाला सब समान ठीके जनवासा में रखवा गइल. लइको वाला खुशी-खुशी नश्ता-पानी कचरऽल आ बिआह के सरसंजाम शुरू हो गइल. लेकिन अबहिन एक-दू घंटा बीतऽल होखी कि कहवां से पंद्रह-बीस जाना मुंह पर गमछी बंधले आइल अउर जनवासा में जउन दू-चार जाना बइठ के गपिआवत रहे ओकरा पर बंदूक भिड़ा के सब गाड़ी पर लाद ले गइल लोग. बराती लोग जब गुरहथी से लउटल तऽ हो-हल्ला भइल बाकी अब करो तऽ का.
गुरु लस्टमानंद कहलन – तऽ एहिमे पुलिस के न काम बा. हमरा लगे का आइल बाड़ ?
रमचेलवा कहलस – नाहीं गुरुजी, बाद में पता लगावल कि गमछवा बंधले जेतना जाना आइल रहे, सबे लईकी वाला के घरे के रहे.
गुरु लस्टमानंद ठठा के हंस पड़लन – जाये द रमचेला, आधा पइसा तऽ मिलिये गइल रहे. एही में संतोष करऽ.
रमचेलवा कहलस – नाहीं गुरुजी कउनो रस्ता निकालल जाओ.
लस्टमानंद हंस के कहलन – भइल बिआह मोर अब करब का. जाये दऽ लईकी वाला के खिलाफ कुछू करबऽ लोग तऽ उलटे तहरे ऊपर चारज लाग जाई. जा सबे प्रेम से अउरी कुछू दूह सकऽताड़ तऽ दूह लऽ नाहीं तऽ जउन भइल तउना के भुला जा लोग.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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