पद्मश्री डा0 कृष्ण बिहारी मिश्र

by | Jan 29, 2018 | 0 comments

जन्म: 01 जुलाई 1936, बलिया जिला के बलिहार गाँव में। श्रीमती बबुना देवी आ श्री घनश्याम मिश्र क एकलौता पुत्र ।

शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा गाँव में, माध्यमिक गोरखपुर में आ उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में । ‘‘नवजागरण के सन्दर्भ में हिन्दी पत्रकारिता का अनुशीलन’’ विषय पर शोध आ डाक्टरेट के उपाधि। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता आ संचार विश्वविद्यालय, भोपाल से डी0लिट्0 के मानद उपाधि।

सेवा: अध्यापन वृत्ति से 30 जून 1996 के सेवानिवृत्ति।
देश के कई विश्वविद्यालययन आ सरकारी, गैरसरकारी विद्या संस्थानन में सक्रिय भूमिका अउरी राष्ट्रीय, अन्तरराष्ट्रीय बिचार गोष्ठियन में भागीदारी।

प्रकाशित पुस्तक: ‘हिन्दी पत्रकारिता : खड़ी बोली साहित्य की निर्माण भूमि’’, ‘पत्रकारिता : इतिहास और प्रश्न’, गणेश शंकर विद्यार्थी, ‘हिन्दी पत्रकारिता: राजस्थानी आयोजन की कृती भूमिका’ ललित निबन्ध अउर संस्मरण -‘बेहया के जंगल’, मकान उठ रहे है, आंगन की तलाश, ‘अराजक उल्लास’, गौरैया ससुराल गई, नेह के नाते अनेक’, ‘कल्पतरु की उत्सवलीला’ आदि

संपादन : हिन्दी साहित्यः बंगीय भूमिका, श्रेष्ठ ललित निबंध (बारह भाषाओ के प्रतिनिधि, ललित निबंधो का दो खंडो में संकलन), कलकत्ता-87, समिधा (त्रैमासिक पत्रिका)

अनुवाद : भगवान बुद्ध (यूनू के अंग्रजी पुस्तक के अनुवाद)

सम्मान / पुरस्कार : एह साल के भारत सरकार के जद्म पुरस्कार में पद्मश्री से सम्मानित ‘आचार्य विद्यानिवास मिश्र सम्मान, डा0 हेडगेवार पुरस्कार, उ0 प्र0 हिन्दी संस्थान से ‘साहित्य भूषण’ आ ‘महात्मा गाँधी पुरस्कार अलंकरण’, भारतीय ज्ञानपीठ के सर्वोच्च ‘‘मूर्ति देवी’’ पुरस्कार सम्मान।।

डा0 कृष्ण बिहारी मिश्र गाँव आ गँवई के नैसर्गिक संस्कार आ शिक्षा-अनुशासन में पलल बढ़ल, भोजपुरिहा मन-मिजाज के सृजनशील साधक हईं । सौभाग से उहाँ के आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी आ आचार्य विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, आचार्य नन्द दुलारे बाजपेयी आ आचार्य चन्द्रबली जइसन विदग्ध आचार्यन के आत्मीय सान्निध्य से साहित्यिक संस्कार आ अनुशीलन के दृष्टि मिलल। हिन्दी साहित्य के अगुवा ललित निबन्धकार का रूप में ख्यात कृष्णबिहारी जी के आपन भाव-सुभाव आ लेखकीय बल-बेंवत के वैशिष्ट्य, उहाँ के अलग पहिचान देले बा।

कृष्णबिहारी मिश्र जी के भाषा में जवन भोजपुरी शब्द संस्कार बा, ऊ उनका लेखन के भाषिक विलक्षणता बन गइल बा जवना से हिन्दी भाषा साहित्य समृद्ध भइल बा। मिश्र जी का लेखन आ भाषा पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, श्री अज्ञेय, आचार्य विद्यानिवास मिश्र, डा0 प्रभाकर माचवे, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, डा0 धर्मबीर भारती, प्रो0 विष्णुकांत शास्त्री, प्रो0 सिद्धेश्वर प्रसाद, प्रो0 राधाबल्लभ त्रिपाठी आदि समय समय पर आपन विशेष टिप्पनी कइले बा लोग।

सम्पर्क: 7 – बी, हरिमोहन राय लेन, कोलकाता -700015


भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के सितम्बर 2017 अंक से साभार

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 11 गो भामाशाहन से कुल मिला के छह हजार सात सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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