खइले रहीं कसम

by | Nov 17, 2012 | 0 comments

– अभयकृष्ण त्रिपाठी

खइले रहीं कसम अब कलम ना उठाएब,
सबसे पहिले मन के अन्धकार मिटाएब.

दिन बीतल युग बीतल बीत गइल हर काल,
मोहमाया के चक्रव्यूह के नाही टूटल जाल.
खाली हाथ जाए के बा पर गठरी ठूस रहल बानी,
झूठा शान खातिर अपनन के लहू चूस रहल बानी.
बाबू माई से अलगा के किस्सा कइसे करीं बखान,
खइले रहीं कसम अब कलम………. .

बुरा जो देखन के दोहा खुद पर फिट बा,
हमार साथ पाके अन्ना के अनशन हिट बा.
अपना अपना स्तर पर हेर केहू भ्रस्ट बा,
छोटका चोरवे बड़का चोर से त्रस्त बा.
आपन करनी जग के सामने काहे गिनाएब,
खइले रहीं कसम अब कलम………. ।

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अँजोरिया के भामाशाह

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यूपीआई पहचान हवे -
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(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


पूरा सूची


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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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