– रामरक्षा मिश्र विमल

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घर फूटेला अउरी लूटे जवार
पीटेली माई कपार
दुरगति के कवनो ना पार.

अइसन पतोह एक आङन उतरलीं
अपने ही हाथ पंख आपन कतरलीं
भाइन का बीच डालि दिहलसि दरार.

भरि गाँव बाजल बा ईजति के ढोल
नौ माह गिनती के कवनो ना मोल
हमके देखावेलन दोसर दुआर.

कवनो तकलीफ बने सुख के भँड़ार
जो लइका फइका के सुख हो अपार
ढहि जाला मउवति के भय के अरार.

चकरी का बीचे दरात बा परान
केनियो गइला पर ना बाची अब जान
धनि बा बुढ़ौती के अइसन सिंगार.

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One thought on “धनि बा बुढ़ौती के अइसन सिंगार”

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