लव कान्त सिंह

बा अन्हरिया कबो त अंजोरिया कबोlav-singh
जिनगी में घाम बा त बदरिया कबो

प्रेम रोकला से रुकी ना दुनिया से अब
होला गोर से भी छोट चदरिया कबो

उजर धब-धब बा कपड़ा बहुत लोग के
दिल के पहचान हो जाला करिया कबो

मिले आजा तू बंधन सब तुड़ के
जईसे नदी से मिलेले दरिया कबो

प्रीत के गीत हरदम सुनाइले हम
दिल के खोलs तुहूँ केंवरिया कबो

दिल में राखब राधा बनाके तोहे
तुहूँ मानs “लव” के संवरिया कबो

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कुछ त कहीं......

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