33a– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

आस्तीन में पलिहा  बढ़िहs

मनही मन परिभाषा गढ़िहs

कुछो जमइहा कबों उखरिहा

गारी  सीकमभर  उचारिहs

हे ! नाग देवता पालागी !

 

हरदम  तोसे नेह  देवता

बसिहा  एही  गेह  देवता

नीको नेवर बुझिया भलहीं

डसिहा  एही  देह  देवता

हे ! नाग देवता पालागी !

 

केकर मितई  कइसे जानब

दुसमन के कइसे पहिचानब

बिजुरी  के  छूवब जे कबहूँ

तोसे बेसी  फन हम तानब

हे ! नाग देवता पालागी !

 

छोछर कुल अभिमान देवता

हेराइल   सनमान   देवता

अकडू से  उकडूं  तू भइलs

अइसन तू  भगमान  देवता

हे ! नाग देवता पालागी !

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2 thoughts on “हे ! नाग देवता पालागी !”
  1. हर समाज में अइसन लोग ढेर भरल बा

कुछ त कहीं......

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