– जयंती पांडेय

रामचेला प्रधानमंत्री के इन्टरव्यू सुनि के एकदम से सेंटिमेंटल हो गइले आ मुड़ि पीटत सनकाह अस बाबा लस्टमानंद के दुअरा आ गइले. बाबा सामने खाड़ा रहले. रामचेला पूछले – बाबा ई का सुनऽतानी कि प्रधानमंत्री जी मजबूर बाड़े.

बाबा कहले – ए बुड़बक, मजबूरिये से मजबूती आवेला ! मजबूरी के बोझा उठावत-उठावत ऊ न खाली अपने बरियार हो गइल, सरकारो के बरियार कऽ दिहले. गठबन्धनो के बरियार कर दिहले. जबे उनुका इस्तीफा का बारे में पूछल जाला ऊ बड़ा मजबूत जवाब देलें कि “अबहीं नाहीं.” तूं नइख जानत रामचेला. प्रधानमंत्री जी के लगे बड़ा बरियार करेजा बा. अतना बरियार कि ओह में सबकुछ समा जाला. उनका लगे अतना बरिया करेजा बा कि केहू कुछऊ कहि देउ, ऊ उखड़ेले ना, मजबूरी का नाम पर अतना मजबूत प्रधानमंत्री शायदे कवनो देश में होखो. एह मामला में हमनी का अपना के धन्य बुझे के चाहीं. इहे नाहीं, प्रधानमंत्री जी सुभाव से अनबोलता हउवन. जब कोंचल जाई तबहियें बोलिहें. असल में मैडम उनुका से अतना कहि बोलि देली कि उनुका बोले के कुछ ना रहेला. एही से ऊ चुप रहल निमन बुझेले. आउर केहू के घोटाला कइला पर प्रधानमंत्री के निमन बाउर कहल ठीक नइखे. काहे कि एगो पी॰एम॰ आ अतना मंत्री. केकरा कवन दांव भेंटाइल बा ऊ एगो मजबूर प्रधानमंत्री कइसे जानी. ऊ त प्रधानमंत्री हउवें, कवनो जासूस ना नू. अब लईका गार्जियन के बात नइखन स सुनत त एह में बेचारा गार्जियन के कवन दोष ? कइसन रीत बा कि कइल केहू आ भोगे के पड़ऽता दोसरा के. अब घोटाला त कइल मंत्री नेता अफसर लोग आ सफाई मांगल जा रहल बा प्रधानमंत्री से. आ उहो एगो मजबूर प्रधानमंत्री से. अब महँगाइये का बात करीं ना. ऊ घटत हइये नइखे. नेता बेपारी खात कमात बा लोग आ गारी सुने के पड़ऽता प्रधानमंत्री के. मजबूर आ बेचारा सुनऽता.

रामचेला कहले – उ सब त ठीके बा लेकिन कहीं जनता मिस्र के नाहिन मजबूर हो गइल त ?

बाबा कहले – जाये द रामचेला. एकर उत्तर देबे में हम मजबूर बानी.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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