ई अंगरेजी हऽ जहाँ चाचा मामा फूफा सभे के अंकल कहाला

by | Jun 15, 2014 | 2 comments

jayanti-pandey

– जयंती पांडेय

लस्टमानंद के नतिया लोअर इस्कूल में पढ़त रहे आ कहत रहे अंकल माने चाचा, मामा, फूफा. उनका आपन दिन याद आ गइल. उहो त इहे पढ़ल रहले. जब ऊ पढ़त रहले त अंग्रेजी पढ़ल मास्टर के बड़ा रुतबा रहे. ऊ मैट्रिक पास रहे बाकी लोग मिडल पास. अग्रेजी त करिया अक्षर भईंस बराबर. ऊ माट साहेब सिखवले कि ब्रोदर माने भाई, सिस्टर माने बहिन आ फादर माने बाबूजी. मदर माने माई आ अंकल माने चाचा वगैरह. माटसाहेब कई गो अउरी रिश्ता बतवले जेकरा हमनी का लईकाईं में घोट गईल रहनी सन. एकदमे से इयाद क लेले रहनी सन. अब ई बात माटसाहब ना कहले रहस कि अंकल के माने खाली चचे ना होला मामा, फूफा आ बड़का बाउजीओ होला. मौका परला पर दादो हो सकेला. ई बात दोसर बा कि ई अंग्रेजी सिखियो गइला पर हमनी का कबहुओं गांव के केहु आदमी के ब्रोदर, चाहे अंकल कहि के ना बोलवनी सन. काहे कि ऊ जमाना में गांव में केहु अंग्रेजी बूझे ना आ इहो डर रहे कि जे एकर कवनो गलती मतलब निकल गइल ओकरा मन में त अईसन कान अंईठी जइसे बोतल के ढकना अंईंठल जाला. लेकिन एइसे कवनो फरक पड़त नईखे.

जब बाबा लस्टमानंद शहर में अपना रिश्तेदार लोग के लगे जाले त देखे ले कि छोटे-छोटे लईकन में बड़कन के कवनो डर नईखे. अब एक दिन लस्टमानंद शहर के एगो कपड़ा के दोकान में कपड़ा कीने गइले त का देखऽतारे कि एगो जवान लईकी ओहिजा बिया आ टूल पर बइठल बिया. बाबा के देखते कहलस, अंकल आप यहां टूल पर बईठ जाइये. बाबा के चेहरा मोहरा के देख के लोग सहजे बाबा कहेला. ई सुंदरी के ऊ अंकल बुझातारे. लेकिन ज्ञान के कमी कबो कबो आदमी के गड़बड़ा देले. ऊ सोचे लगले कहीं अंकल माने बाबा त ना होखे. लेकिन का करसु? लईका रहित त टोकियो देते. ऊ त रहे लईकी. दोकान में बइठल उनका भारी लागे लागल. कसहुं दोकान से निकलले आ चलले भाग जइसे दिसा के जोर होखो. दिसा के जोर के बारे में बतावे के दरकार नईखे. दुनिया में शायदे केहु होखी जे परम उत्तेजना के ई घड़ी के परतियवले ना होखी. बहुत सोचला पर पता चलल कि ऊ बाबा कहि देत त ओकरा के लोग बहिन जी टाइप करार दे दीत एही से ऊ अंकल कहत रहे. माने लोग ओकरा फारवर्ड कहो. लेकिन तबो ई अंकल के प्राब्लम अबले ना समझ में आइल कि अपना गांव में चचा के जे अंकल कहेब त मामा के का कहेब?


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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2 Comments

  1. kiran

    बहुते खूब…

  2. kiran

    ठिके कहतानी अंग्रेजी के बाते निराला बा….

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अँजोरिया के भामाशाह

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यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 11 गो भामाशाहन से कुल मिला के छह हजार सात सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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