– जयंती पांडेय
जबसे बाबा लस्टमानंद सुनले कि सरकार गरीब लोग के एगो मोबाइल फोन फ्री दी तबसे बउरा गइल बाड़े. कई हाली रामचेला कहले कि ई मुफुत के लिहल आ भीखमंगी बराबर होला लेकिन बाबा बाड़े कि सुने के नईखन चाहत. उनकर कहल हऽ कि मुफ्त के माल में बरकत होला. मुफुत के माल में कवनो खराबी नइखे. जे लोग मुफुत के माल के भीख बूझेला ऊ लोग बेकूफ होला. मुफुत के माल में अमीरी होला एही से जे मिले ऊ दाब लऽ. फेर मिली कि ना मिली. मुफुत के माल पावे खातिर जवन मेहनत आ जवन संघर्ष करे के परेला ऊ बाबा रामदेव के ब्लैक मनी के आंदोलन से कही जियादा बड़हन होला. एही से बाबा जबसे सुनले कि सरकार गरीब लोग के मोबाइल दी तबसे खुसी से बउरा गइल बाड़े.
एकदिन राम चेला पूछले बाबा तूं तऽ निमन गिरहथ हउवऽ आ लईका, नाती पोता सब लोग निमन नोकरी करऽता त तूं गरीब कइसे हो गइलऽ? बाबा बमक गइले. कहले हम आज से गरीब बानी? हम तऽ आजादी के पहिले से गरीब बानी. पूरा परिवार गरीब बा एही से सरकार के कवनो दान में पहिलका हक हमार हऽ. ई तऽ सरकार के बड़प्पन हऽ कि ऊ हमनी के खेयाल राखेले ना तऽ ई देस में गरीब के के पूछेला. जबसे गरीब लोग के मोबाइल देवे के घोषणा भइल तबसे कुछ बुद्धिजीवी लोग बा उनका पेट में कलछुल घूमे लागल. लागल लोग कहे रोटी ना फोन दिहल जाता, एह से का होई?
असल में ई बुद्धिजीवी लोग के गरीब के सुख बर्दाश्त ना होला. जब कवनो मुफ्त देवे के बात होला तऽ ई मार कलम ले के भिड़ जाला लोग, लागी लोग लिखे. लागी लोग चैनल पर भूंके. एकदम रोष में आ जाई लोग. जहां गरीब के सुख सुनल लोग कि चौबीसो घंटा समाजवाद के झंडा उठवले रही लोग. अपने भले मॉल से लेडिज फिंगर (भिंडी) कीने लोग, मैकडोनाल्ड्स के लंच करे लोग लेकिन कवनो गरीब के कुछ भेंटाये के सुनल लोग ना कि पेटगड़ी उपट जाला. आजु ले ई लोग गरीब के कुछ ना दिहऽल लोग बस जबानी जमा खरच छोड़ के. अगर सरकार दे रहल बिया तऽ कवन गलत कर रहल बिया. इहंवां तऽ आधा जिनगी नून तेल लकड़ी के चक्कर में गुजर जाला. मोबाइल के कीनी? अइसन में केहु जे मोबाइल देता तऽ कवन अन्याय? का गरीब लोग के ‘दुनिया मुट्ठी में करे के’ अरमान ना होला चाहे ऊ लोग के खातिर ‘हर फ्रेंड जरूरी होला’ ना का? आज काल तऽ फोन से रोजी रोटी के जोगाड़ होला. ई बुद्धिजीवी लोग कबहुं ना चाहे कि गरीब लोग तरक्की करे, ऊ लोग तऽ चाहे ला एकनी का हमेशा माटी के माधो बनल रहे. उनकर क्रांति भले फेसबुक होखो पर हमनी के फेस पर कभी हंसी ना लउके के चाहीं. खैर ई लोग चाहे जे कहो हमनी का सरकार से मोबाइल ले के रहेब सन.
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
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