– जयंती पांडेय
लस्टमानंद से उनकर एगो संहतिया गोपाल जी भेंटइले. लगले कहे, भाई हो, पहिले घर के दरवाजा पर लिखल रहत रहे ‘अतिथि देवो भव:’ लेकिन आज काल्हु घर के गेट पर लिखल रहऽता ‘ कुत्तों से सावधान.’ गोपाल जी ठीके कहले. जान जाईं सभे कि इहे लिखला के वजह से हम माने लस्टमानंद काफी दुखी हो के नेता, अफसर आ बड़का लोगन के घर गइल छोड़ि दिहनी. बड़ा अजीब बा. कई जगह गेट पर लिखल रहेला कि ‘कुत्तों से सावधान’ लेकिन कई जगह त लिखल रहेला ‘कुत्ते से सावधान.’ बड़का लोग के घर में सुरक्षा के काम खातिर कुकुर राखल कवनो आश्चर्य के बात नइखे लेकिन जब बोर्ड पर ई लिखल रहेला कि ‘कुत्तों से सावधान’ त बुझाला कि ओह घर में कुकुरन के राज बा. आज सुरक्षा के इरादा से कुकुर पाल लिहल कवनो बड़ बात नइखे लेकिन जे नवकरमिया धनिक होला ऊ त बड़का देखावे के गरज से कुकुर पोस ले ला. हम त कई गो फेशनेबल मेम साहेब, जेकरा आज काल ‘मैम’ कहल जाला, के कोरा में पिल्ला देखले बानी. जे ऊ लोग आपन औलाद के अतना प्यार से राखित त बुढ़ापा सुधरि जाइत. कुकुर पोसला के चर्चा सुन के हमरो मन में आइल कि एगो पिल्ला पोस लिहल जाउ. एक दिन फजीरे उठ के पूरा दिन एगो नीमन पिल्ला जोहनी. बिलायती के कहो देसी माने लेड़ी कुकुरो ना मिलल. जवन पसंद ना आवे लोग ओही के पाथ देवे के चाहत रहे. पूछ ताछ से पता चलल कि ओकरा रहे आ खाये में जवन खरचा लागऽता ओह में त दू गो अनाथ लइकन के पोस लिआव त धरम होई. हम कुकुर पोसे के विचार तेयाग दिहनी. लेकिन अमीर लोगवा के कइसे रोकीं. ऊ लोग के त कुकुरमोह तेयागे खातिर हम जोर ना दे सकीं. देश भर में ई कुकुरन के पोसला पर साल में जेतना खरचा होला ओतना खरचा में कम से कम 50 हजार अनाथ लइकन के लायक बनावल जा सकेला. जब देश में भुखमरी आ गरीबी ना रही त चोरी, लूट ई सब त अपने आप बंद हो जाई. कुकुरपालक लोग के समझावल आ बिलारी के गर में घंटी बान्हल बरबरे बा. सरकार के चाहीं कि कुकुर पोसला पर रोक लगा देउ. बड़का बड़का कोठी के लोहा के गेट के पीछे खाड़ा हो के गुरगुरात जब भूअरा कुकुरा सड़क पर आवे ला आ सड़क के कंकुरा चहेटे ले सन त पोंछ के पेट में सटा के भाग पराला लोग. अब चाहे केतनो स्वामीभक्त कुकुर होय आ जब जगहा पर काम ना आवे त कवना काम के. हां गोपाल जी के ई बतावल जरूरी बा कि आज काल्हु कुकुरन के कैरेक्टर बदल रहल बा. अब ऊ कटला के बदले चाटऽ तारे सन. भूकला के बदले गुरगुरातारे सन. आदमी के साथ रहि के धोखेबाजी, चापलूसी, पोंछ डोलावल आदि आदमी के गुण सीखत जा तारे सन. दोसरा इयोर अदमियों में लालच वगैरह कुकुर के गुण लउकऽता. अगर ई परिवर्तन व्यापक भइल त घरन के दरवाजा पर लिखा सकेला ‘आदमी से सावधान..’
जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.
BAHUT SUNDER VYANG……
KAHAL JALA KI KUKURO KE DIN FIRELA,
T EHE BAT BA …..KUKURAN KE DIN FIR GAEEL BAA.
बहुत सुन्नर आलेख.