नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस). अन्ना हजारे के आंदोलन का कवरेज में मीडिया, खासतौर से टेलीविजन के भूमिका पर सवाल उठावत विशेषज्ञ एहमें अधिका संतुलन आ निष्पक्षता के जरूरत बतावत बाड़े आ पक्षपातपूर्ण अउर सनसनीखेज रिपोर्ट से बाचे के सलाह देत बाड़े.
समाचार पत्र ‘द हिंदू’ के सम्पादक सिद्धार्थ वरदराजन आईएएनएस से कहले, “अन्ना हजारे के आंदोलन के कवरेज करत मीडिया अन्ना टीम के अउर अन्ना के सहयोगियन के अनुचित बयानो के आलोचना नइखे करत.”
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अम्बिका सोनी अन्ना हजारे के ओह टिप्पणी के आलोचना कइले बाड़ी जवना में अन्ना कहले बाड़े कि मीडिया आ उनुकर समर्थक उनुका परिवार के तरह हउवे. सोनी एह बाति पर आश्चर्य जतवली कि मीडिया आंदोलन के हवा देत बा.
वरदराजन कहले कि, “इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जवना तरह अन्ना पक्ष के बढ़ावा देत बा ओहसे हम परेशान बानी. लेकिन प्रिंटो मीडिया के एह मुद्दा पर आत्मनिरीक्षण के जरूरत बा.”
वरिष्ठ पत्रकार प्रेमशंकर झा अइसने विचार जाहिर कइले. कहलन कि, “टीवी पर विश्लेषण जब राजनीतिक दल के प्रतिनिधियन का बीच के लड़ाई बन गइल बा त अइसना में रउरा का परोसत बानी.”
झा के कहना बा कि कवरेज का मामिला में प्रिंट मीडिया बेसी संतुलित बा.
टिप्पणीकार संजय हजारिका एह बाति के जाँच करावल चाहत बाड़े जवना से राजनीतिज्ञन आ उद्योगपतियन से मीडिया के सांठगांठ पता चल सके. कहले कि मीडिया ना त प्रक्रिया के ख्याल करत बिया ना ही आपन दिमाग खुला रखले बिया.
वरिष्ठ पत्रकार भास्कर रॉय के कहना बा कि, “यदि मीडिया आरोप लगावत बा त दोसरो पक्ष के आपन बाति राखे के मौका मिले के चाहीं. जमीनी सच्चाई बतावत घरी मीडिया के जिम्मेदारी से काम करे के चाही.”
हिंदी समाचार पत्र ‘दैनिक भास्कर’ के समूह सम्पादक श्रवण गर्ग कहले कि , “हजारे के आंदोलन के कवरेज ना त अंतर्राष्ट्रीय बा, ना सुनियोजिते. काल्हु अगर कवनो दोसर बड़ आयोजन शुरू हो जाव त मीडिया एह तरफ से आंख मूंद ली. मीडिया बस जनता के मांग पूरा करत बिया. जनता के भावना भ्रष्टाचार का खिलाफ बा आ उहे मीडिया में झलकत बावे.”
(इंडो-एशियन न्यूज सर्विस)
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