– विनोद द्विवेदी
सड़क का किनारे बान्हल बकरन के झुण्ड में कुछ बकरा बीमार आ उदास लागत रहलन स. एगो बकरा दूइए दिन पहिले खरीद के आइल रहे. उपास खड़ा दोसरा बकरा का तरफ देख के जइसे कहल चाहत रहे कि ना जाने कवना घड़ी में हमार जनम भइल रहे कि इहाँ आ गइनी. ई नया मलिकवा त बड़ा निर्दयी बा. अपने त घाम भइला ले सूतल रहेला आ नीन से जागते आधा अधूरा खिया के घसीटत सड़क का किनारे बान्ह देला.
ई सून के पहिले से बान्हल बकरा समर्थन में मूड़ी हिलवलसि. जइसे कहत होखे कि अब ई दुख सहे लायक नइखे. कबले आधा पेट खा के घाम आ बरखा में सड़क का किनारा बन्हाइल रहे के पड़ी. ई मालिक त हमन में भेदोभाव करेला. कवनो कवनो बकरन के भर पेट नीमन नीमन भोजन देला. आ हमके पूछबो ना करेला.
दुसरका बकरा बोलल, ‘पता ना ऊ दिन कब आई कि हमनी के अच्छा भोजन नसीब होई.’
आगा शो रूम में बन्हाइल ताजा बकरा उन्हनी के बतकही सुन के मुसकियाए लागल. ओके त मालूमे रहे कि अच्छा अच्छा भोजन हलाल होखे का पहिले मिलेला. ऊ जोर से कहलसि, ‘तोहनो लोग के नंबर जल्दिए आई.’
भोजपुरी के जानल मानल कथाकार विनोद द्विवेदी पूर्वांचल विश्वविद्यालय से स्नातक हईं आ भारतीय खाद्य निगम में अधिकारी बानी.
लघुकथा संग्रह ‘अनजान डहर के संगी’ जल्दिए प्रकाशित होखे जा रहल बा. प्रस्तुत लघुकथा एही संग्रह से लिहल गइल बा.
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