गाछ ना बिरीछ तहाँ रेंड़ परधान (बतकुच्चन – १३८)

by | Dec 10, 2013 | 0 comments

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गाछ ना बिरीछ तहाँ रेंड़ परधान. कहे के मतलब कि चँवरा में सिंकिया पहलवानो ताल ठोक सकेला काहे कि ओकरा मालूम बा कि ओकरा के केहू चुनौती देबे ना आई. एही भरोसे हमहू बतकुच्चन करत रहीले काहे कि मालूम बा कि केहू चुनौती देबे ना आई. हालत फेसबुक जइसन बा जहाँ रउरा लाइक त कर सकीले अनलाइक करे के सुविधा नइखे. कमेंट करे से पहिले सोचे के पड़ेला. हो सकेला कि कमेंटा कमेंटी का फेर में दोस्ती टूट जाव. घर में बहस करे आ समाज में बहस करे में इहे फरक होला. घर में अपना दोस्त से जतना मन करे ओतना गरमागरम बहस कर लीं बाकिर बहरी करब त दोसरो लोग शामिल हो जाई. आग बुतावे झगड़ा मेटावे का जगहा उ लोग लहकावे के काम करे लागी. एहसे हमनी के आदत हो जाला कि सार्वजनिक तौर पर अपना हितमित के आलोचना ना करीं.

पिछला दिने दू गो विद्वान के लिखल पढ़े के मौका मिलल. बात रहल इन्द्रधनुष के. एक जने कहलन कि भोजपुरी में एकरा ला बोरो के इस्तेमाल होला हालांकि मनलन कि बोरो एगो सब्जीओ के कहल जाला. दोसर विद्वान के कहना रहे कि इन्द्रधनुष ला बोरो त ना बरोहि कहल जाला. अब बरोहि का बारे में बतियावे से पहिले सूँढ़ी का बारे में बतियावे के मन करत बा. सूंढ़ी का बारे में रउरा जानत होखीं से त हो सकेला बाकिर ओकरा के सूंढ़ी का बदला कवनो दोसरा नाम से जानत होखब रउरा. हम जवना के सूंढ़ी कहत बानी तवन आसमान के बदरी से धरती पर लटकल सूँढ़ जइसन आकृति होले. ई आकृति वइसे त समुंदर में लटकल करेला बाकिर कबो कबो नदी भा पोखरो पर लटक सकेला. एकर काम होला पानी सोखे के. आ ओह पानी का संगे कई बे पानी के जीवो खींच लेला आसमान में. पता ना रउरा कबो आसमान से गिरल मछरी खइले बानी कि ना बाकिर एक बेर हमरा ई सौभाग्य मिल चुकल बा.

हँ त जब हम एह सूँढ़ी का बारे में बतवनी त हमार एगो दोस्त हमार खिल्ली उड़ावे लगले. बाकिर बाद में संजोग से उनुके साथ कोलकाता म्यूजियम में जाए के मौका मिलल. ओहिजा बाकायदा फोटो में वइसने सूंढ़ी देखावल रहुवे बाकिर ओकर कवनो नाम अंगरेजी में दीहल रहे जवन हमरा अबहीं याद नइखे आवत. बाकिर बाकायदा ओकर वर्णन देके समुझावल रहे कि एकरे चलते कबो कबो आसमान से मछरियन के बरखा हो जाला.

अब एहिजा सूंढ़ी के चरचा हम बस एह ला क दिहनी कि जरूरत का हिसाब से हमेशा नया नया शब्द बनत रहेला, पुरान शब्द के नया अर्थ में इस्तेमाल होखे लागेला. आखिर जब कवनो चीझु भा बात ला शब्द ना मिली त बोले बतावे वाला आदमी ओकरा ला कवनो ना कवनो शब्द गढ़बे करी. गँवे गँवे उ शब्द ओहिजा के समाज में प्रचलित होखे लागी आ जब प्रचलन अधिका हो जाई त उ शब्द सभका ला मान्य हो जाला. एह बीच हो सकेला कि रउरा अगल बगल प्रचलित शब्द दोसरा जगहा प्रचलन में ना होखे. अब एक बेर फेरू लवटत बानी बोरो आ बरोहि प. आखिर एह दुनु शब्दन में कुछ ना कुछ त बड़ले बा जवना चलते एकर इस्तेमाल इन्द्रधनुषो ला हो सकेला. वइसे बोरो आ बरोहि दुनु इन्द्रधतनुष ला मानक भोजपुरी शब्द अबहीं नइखे, बाद में हो जाव त नइखे मालूम. बोरो लतर वाली सब्जी ह जवन लटकल रहेले अपना लतर से आ बरोहि बरगद के डाढ़ से लटके वाला रसरी जइसन जड़ होले जवन नीचे चहुँप के जमीन में गड़ जाले आ बाद में एगो तना जस हो जाले. इन्द्रधनुषो आसमान से लटकल रहेला आ दुनु तरफ जमीन में गड़ल रहेला. एह से हो सकेला कि कतहीं केहू एकरा के बोरो कहे लागल होखे आ कतहीं बरोहि. रउरा किहाँ का कहाला एकरा के? जानत बानी कि बताएब ना सभे तबो पूछला में कवनो हरजा नइखे सोच के पूछ लिहनी.

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अबहीं ले 10 गो भामाशाहन से कुल मिला के पाँच हजार छह सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)


18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया


(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(5)

5 अगस्त 2023
रामरक्षा मिश्र विमत जी
सहयोग राशि - पाँच सौ एक रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


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