– ओ.पी. अमृतांशु
नवमी के दिने देवी लेली बलिदनवा,
खस्सिया पे चले तलवार होऽऽऽ.
करेले बकरिया गोहारऽ ए माई,
करेले बकरिया गोहार होऽऽऽ.
बड़ी रे ललसवा से दिहलीं जनमवा,
चुमी-चाटी बबुआ के संझिया-बिहनवा,
नेहिया -सनेहिया के लहसल बगिया,
होई गइले हमरो उजाड़ होऽऽऽ.
माई होके माई के ममतवा न जनलू,
लोरवा के धार मोरी अँखिया से फोरलू ,
ओढ़ लेलु सभे के रे दुखवा-बिपतिया,
हमरा के कइलू बेसहार होऽऽऽ.
उमड़ल थनवा से टपकेला दुधवा,
कतहीं ना सूझे माई बचवा के मुँहवा,
छछने जियरवा रे कलपे करेजवा,
केकरा के करीं हम दुलार होऽऽऽ.
डहकेलू-छछ्नेलु काहे तू बकरिया,
लोरवा के बुनवा से धोअलू चरनिया,
बचवा तोहार बनल हमरो सेवकवा,
होई गइले तोहरो उद्धार होऽऽऽ.
करेले बकरिया गोहार ए माई,
करेले बकरिया गोहार होऽऽऽ.
(ध्यान दीं – अँजोरिया एह तरह के पशुवध के खिलाफ हियऽ. ई कविता कवि के आपन विचार ह.)
रोआं कंपावेवाला रचना बटुए अमृतांशु जी . वाह! मजा आ गइल.
राउर देवी -गीत पढ़ के , बकरिया के साथे-साथे हमारो के रोआ दिहलस .बड़ी मार्मिक रचना बा .
भोला प्रकाश सिंह