– डॉ राधेश्याम केसरी

केतना बदल गइल संसार,
कतहुँ नइखे अब त प्यार।
खाली लाभ के खातिर,
झूठे बनल बनवटी प्यार।

बचवन के फुटपाथे असरा,
बाप छोड़ जिमेवारी भागल।
छोड़ परानी भाग गइल बा,
मर्दा मुई मतलबी यार।

माई कटलस मुड़ी बेटी के,
अँधियारा सगरो चोटी के।
अपना जमला के इज्जत से,
रोजे होत हवस खेलवाड़।

आँखे गुर्दा काढ़ ल जेकर,
खून पसीना बेच ल जेकर।
कांड निठारी आज भी जहवाँ,
देह बनल खुनी व्यपार।

मंदिर में घण्टा गायब त,
कब्बो गायब ई भगवान।
खबरन से ई भरल परल बा,
रोजे निकलत बा अख़बार।

अपराधो आबाद हो गइल ,
कांटे नियर बाग़ हो गइल।
मीठ बतकही कतहुँ नइखे,
सगरी बढ़ल जात तकरार।

केहू साफ त बोलते नइखे,
अंखिया तनल मरकते नइखे।
चेहरा पर चेहरा चिपकल बा,
ओकचत बोकला बारम्बार।

अपराधी नेता हो गइले,
अपने हित क बात उ कइले।
मुद्दन वाली बात भुला के,
संसद में कर जाले मार।

कथनी करनी बदल गइल बा,
साँच गवाही,संभल गइल बा।
अब त हमरो ओठ खुलल बा,
गोड़ क गरमी, चढ़ल कपार।

2) आदमी

धूप सहल मुश्किल हो जाला।
हर सवाल पर उ घबराला।
सत्ता में आबाद उहे बा,
शासन क बुनियाद आदमी।

दुधारी जे बात हो गइल।
ओकरे इन्हवा राज हो गइल।
कइसन बाटे लोकतंत्र इ,
जेलो में आजाद आदमी।

हर मोरचा पर फेल बा शाशन।
न बिजली न बाटे राशन।
देशी ठर्रा, अउरी रम में,
बा इन्हवा बरबाद आदमी।

महंगाई के चरम बुझाइल।
चुल्ही में क आग बुताइल।
बंजारा बन घूम रहल बा,
बिन बोले,बिन स्वाद आदमी।

बंधुआ आउर बेगार इँहा बा।
भूखे क त्यौहार इँहा बा।
दुनिया क सुन्दर रचना में,
अक्लमंद मरजाद आदमी।

राजमहल क सुख सोझा बा।
हमरे सर पर दुःख बोझा बा।
बा अंजोर जेकरा जिनगी में,
ओकरे बा सज्जाद आदमी।

धरम करम में रमता योगी,
पीठ में छुरा उहे धँसा दे।
जे दुनिया के राह दिखावे ,
ओकरे बा ओलाद आदमी।

कुछ लोगन के हैपी हो -ली।
मन गद गद बा भरल ठीठोली।
हवस हमारे सिर पर नाचे,
काहे बा जल्लाद आदमी?

इंकलाब फिर कहिया होई?
अब कालिख सब कहिया धोई?
काहे आपन हाथ कटाके,
बा इन्हवा आबाद आदमी?


डॉ राधेश्याम केसरी
ग्राम, पोस्ट-देवरिया,
जिला -ग़ाज़ीपुर उ.प्र.
पिन 232340
मो,9415864534
rskesari1@gmail.com

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By Editor

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