– डा0 अशोक द्विवेदी

DrAshokDvivedi

दउर- दउर थाकल जिनगानी
कतना आग बुतावे पानी !

बरिसन से सपना सपने बा ;
छछनत बचपन बूढ़ जवानी ।

हरियर धान सोनहुली बाली,
रउरे देखलीं , हम का जानी ?

कबहूँ -कबहूँ क्षुधा जुड़ाला
जहिया सबहर जरे चुहानी ।

पूत -पतोह बसल परदेसे –
उचटल बखरी, छूँछ पलानी ।

खन सझुराईं खन अझुराईं
जस के तस बा अकथ कहानी ।

‘देसिल बयना’ जुग से पिछड़ल
अंगरेजी के बा रजधानी !

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By Editor

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