– डा0 अशोक द्विवेदी
एह बेशरम-अनेति पर अउँजा के, का लिखीं
उरुवा लिखीं, उजबक लिखीं कि बेहया लिखीं
लंपट आ नीच लोग बा इहवाँ गिरोहबन्द
सोझबक शरीफ के बा बहुत दुरदसा लिखीं
लँगटे-उघार देहि से, दिल से दिमाग से
अइसनका लोग ढेर बा,अब कतना, का लिखीं
एह देश के कहिया ले जान छोड़ी गुलामी
कवना अधीनताई के दारुन-कथा लिखीं
लोहू से लिखल बा इहाँ जिनगी क दास्तान
स्याही से भला ओके अब, केतना दफा लिखीं