– रामरक्षा मिश्र विमल
बरिसावऽ माँ नेह सुधा
कब ले जियरा छछनल।
जग जीवन पर छवल निराशा
लागि रहल मधि रइनि अमवसा
कब ले पूरनवासी आई
दया रूप उमगल।
अनाचार के सगरे पहरा
बिलखत जिनिगी के भिनसहरा
फइला दऽ ना ग्यान जोति
जड़ बुधि होखो चंचल।
नीति कला के लोप हो रहल
मानवता पर कोप हो रहल
एको बेरि त झनकारऽ
बीणा के तार मँजल।
(काव्य संग्रह ‘फगुआ के पहरा’ से)
जय हो मइया शारदा………