सपना देखल आ देखावल

by | Aug 8, 2015 | 0 comments

– डाॅ. अशोक द्विवेदी

AKDwivedi-Paati

चउधुरी साहेब के पम्पिंग सेट जब मर्जी होला तबे चलेला. दस लीटर डीजल दिहला पर, तीन चार दिन दउरवला का बाद एक दिन चलल त रामरतन के बेहन परि गइल आ जब रोपे क बेरा आइल त कीच-कानो भर क बरखा भइल. दू दिन का छिलबिल से अगराइल रामरतन मेहरारू आ बेटी का बले रोपनी त क लिहले बाकि बदरी अस नाच नचवलस कि सगरी असरा उमेद मुरझाए लागल. रामरतन के बेटा मेहरि लेके शहर चल गइल. पहिले ऊ टेक्टर टेम्पू चलावत रहे त बेर बागर खाद बीया आ दर-दवाई में मदद क देत रहे. अब छव महीना से ओकर पतो ठेकान नइखे. रामरतन बतवलन कि ऊ कवनो हैन्डलूम वाला के मिनी ट्रक से माल ढोवाई क काम करत रहे बाकि मन्दी का वजह से उहां नोकरियो छूट गइल पता ना कहाँ बा ? कवनो जोहो समाचार ना देलस.

हमहूँ एगो सनकी बानी, गाँव क रोपनी छोड़ शहर में पहुँच गइली़. आज प्रधानमंत्रीजी चेन्नई गइलीं त हैन्डलूम आ खादी के प्रदर्शनी देखलीं; ओके बचावे-सँवारे क बात कइलीं. हाथ के बीनल कपड़ा कीने क अपीलो कइलीं. हमरा का जाने काहे उनकर ई परेम औपचारिके लागल. परंपरागत कामन प संकटे संकट बा. किसान सगरो उल्टा परिस्थिति का बादो अपना टुकड़ा भर खेती क मोह नइखे छोडत आ बुनकर लाख दुरदसा का बादो आपन काम नइखे छोडत. बाकि दूनों धन्धा से पलायन जारी बा. शहर में कमाए क कतने जरिया बा. रेकसा-ठेला, मजदूरी, कारीगरी भा छोट मोट रोजी रोजगार क उपाय बा.

रामरतन क लड़िका जोलहा बुनकर त रहे ना; बाकि उनहन का बीच मे जियका क जोगाड़ क लेले रहे. ऊहो छूट गइल. काहें ? काहें कि खेती का परंपरागत काम का सँगग सँग दुसरको पुश्तैनी रोजिगार प गरहन लाग गइल. ईहो एगो संजोगे कहाई कि पछिला चुनाव मे़ एही बनारस से सांसद चुनाइल आज देश क प्रधानमंत्री बा. ऊ अपना चुनाव अभियान का बाद अइलन त किसान, गाँव, आ बुनकरन से सहानुभूतियो देखवलन, कुछ सपनो देखवलन. अंगरेजन का समय से दिनों दिन खराब आ खस्ताहाल होत गइल खेती आ परपरागत रोजगारन से जोराइल लोगन का भितरी उमेद क किरिन फूटल; बाकि का सचहूँ एह घुनल, नोनियाइल व्यवस्था मे कवनो खास बदलाव आइल ? खेतिहर आ बुनकरन के बदहाली खतम होत लउकत बा ? लाखन का कपार प ना त ढंग क छत बा ना सुविधान भोजन बस्त्र. दुनिया खातिर कपड़ा बुने वाला बस्त्र से वंचित बा त अनाज फल उपराजे वाला भरपेट भोजन से. सरकार चाहे केन्द्र क होखे चाहे प्रदेश के, गंभीरता से मिल के बहुत कुछ कर सकेले; बाकि राजनीति ?

सपना देखल आ देखावल खराब ना होला सपना के मुवल आ मुवावल खराब होला. कर्ज, पुनर्वित्त, संसाधन आ राहत के घोषणा का बादो काहें एह बेचारा बुनकरन खेतिहरन के बदहाली दूर होखे क नाँव नइखे लेत ? जबाब साफ बा – एगो त ईमानदार कोसिस क अभाव बा दुसरे बिचवलियन आ दलालन के माया मकड़जाल. एहसे छुटकारा मिलित त साइत बहुत कुछ होइत. ओइसे ई एघरी आम जीवन में समा गइल बा. उँघइले-महटियइले नइखे दूर होखे वाला. कुछ हमनी का जागी जा; कुछ सरकारो चेतो !


डाॅ. अशोक द्विवेदी भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका पाती के संपादक हईं आ बहुत रिगिर कइला पर भोजपुरिका खाति नियमित ब्लाग लिखे ला तइयार भइल बानी.

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 11 गो भामाशाहन से कुल मिला के छह हजार सात सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


संस्तुति

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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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