कथा भर औकात – (पुरातन अन्दाज में एगो नया कहानी)

प्रकाश उदय एगो कवना दो देश में, एगो राजा रहन. रजवा के सात गो रानी रही. सातो रनियन से एकए गो लइका रहे. जवना रानी से पुछाय तवन बतावे कि…

सदमा

कृष्णानन्द कृष्ण रिटायर्ड़ भइला का बादो दीनदयाल जी के दिनचर्या में कवनो बदलाव ना आइल रहे. उहे पूजा-पाठ, सध्या-वन्दन आ खाली समय में कवनो ना कवनो विद्यार्शी के विद्यादान. उनकर…

माँछी

दिनेश पाण्डेय उहाँ का सँगहीं रहनीं। बइठार रहे त चलीं सउदा-सुलुफ का सँगे कुछ मटरगस्तियो हो जाई, एक पंथ दुइ काज। तय भइल जे किराना बाजार मुँहें चलल जाई, फेरू…

कबहुँ न नाथ नींद भरि सोयो

– कमलाकर त्रिपाठी बाँके बिहारी घर से दुई-तीन कोस चलल होइहँ कि ओनकर माई चिल्लइलिन, ”रोका हो गड़िवान, दुलहिन क साँस उल्टा होय गइल.“ बाँके लपक के लढ़िया के धूरा…

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