जहुवाइल आदमी आ जमकल पानी (बतकुच्चन १४०)

by | Dec 24, 2013 | 0 comments

admin
कुछ दिन पहिले जहुवाइल के चरचा भइल रहुवे. आजु ओही जहुवइला से आगे बढ़त बानी.

कहल जाला कि जहुवाइल आदमी आ जमकल पानी अपना हालात से निकल ना पावे. आदमी जहुवाला त तय ना कर पावे कि केने जाईं, का करीं. हिन्दी में एह जहुवइला खातिर शब्द बा किंकर्तव्यविमूढ़. ओही तरह जमकल पानी अपना जगहा से निकल ना पावे. बाकिर ई जमकल पानी गइहा, पोखरा, तालाब, सरोवर, झील के पानी से अलगा होला. ओकरो पानी ठहरल होला बाकिर ओकरा खातिर जमकल पानी ना कहाव. जमकल पानी ओहिजा लागल पानी खातिर कहल जाला जहाँ उ आम तौर प ना रहे, एने ओने बह जाला. एही तरह के एगो थथमल पानी छाड़न के होला. नदी जब आपन बहाव बदल के दोसरा राहे निकले लागेला त जवन पानी पीछे छोड़ जाले ओकरे के छाड़न कहल जाला.

खैर, जमकल पानी से आगे बढ़ल जाव आ जहुवाइल आदमी प लवटल जाव. सोचे के बात होला कि जहुवाइल आदमी कुछ तय काहे ना कर पावे? एकरा पीछे असकत होला कि असकस कि अहजह?

असकत के माने होला आलस्य भा अशक्त होखल. हालांकि असकत आलस्य आ अशक्त के मतलब अपना में समेटला का बावजूद कुछ अलगे तरह के भाव समेटले होला. आलस्य कुछ करे ना देव बाकिर असकत करे के मनो ना होखे देव. असकत करे वाला आदमी अशक्त होला अइसन बात ना होखे. ओकरा लगे शक्ति होला बाकिर ओकरा में ओह शक्ति के इस्तेमाल करे के मन ना होखे. ई त भइल असकत के बात. अब चलीं असकस प.

असकस माने असहज भा अनइजी होखल. हालांकि हमरा लागेला कि असहज होखला में उ छटपटाहट ना होखे जवन असकस में होखेला. जइसे कवनो आदमी दोगा में दबाइल होखे भा सकेता में पड़ गइल होखे. तब उ असहज से अधिका बेचैन होखेला. असकस में असहज होखला का साथे उ बेचैनी वाला भावो शामिल होखेला. आ आखिर में अहजह प.

अहजह में पड़ला के मतलब जहुवाइल जइसन होला.बाकिर बतकुच्चन करे ला हम त इहे कहब कि जहुवाइल आदमी के इहे पता ना चले कि केने जाव का करो बाकिर अहजह में पड़ल आदमी का सोझा दू गो विकल्प होला आ ओकरा ओह दू गो में से एगो विकल्प के चुने होखेला.

चलत चलत अब इहो बतावल जरूरी लागत बा कि का बात बा कि आजु हम असकत, असकस आ अहजह प अतना बतिया लिहनी. हालांकि बतिया कहते याद आ गइल “कुम्हड़ बतिया” के, कवनो फल के शुरूआती रूप. जइसे फूल के शुरुआती रुप कोंढ़ी कहल जाला वइसहीं फल के शुरुआती रूप के बतिया. कोंढ़ी आ कोढ़ी के फरक बतवला के जरूरत ना पड़े के चाहीं. खैर आज अहजह, असकस में पड़ल बिया देश के जनता. उमेद करे के चाहीं कि उ असकत में ना पड़ी आ अगिला बेर जब मौका मिली त खाँस खँखार के गला फाड़ के आपन बात साफ क दी. अपना फैसला से उगलत आन्हर निगलत कोढ़ी वाला हालात ना पैदा करी. एही उमेद में हमहू बानी आ रउरो जरूरे होखब. आस छोड़ला के जरूरत नइखे.

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(1)
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(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


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