– पाण्डेय हरिराम

कृषिर्भूवाचक: शब्दोणश्च निवृतिवाचक:
तयोरैक्यं परंब्रह्म इत्यभिधीयते (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्मखंड 28 )

कहे के माने कि “कृष… सत्ता के कहाला. अतुलित सत्ता के नाम कृष्ण ह. ..ण.. के मतलब होला मुक्त भइल, आनन्दित भइल.
एही असीमित सत्ता, सार्वभौमिकता, आ असीमित आनन्द के मिला के कृष्ण बनेला. बाकिर आज हालात दोसर बा. असीमित सत्ता त बा बाकिर आन्नद सभका खातिर नइखे रहि गइल.
समय कब ना बोलवलिस ?
समय त आजुओ चिचिआत बा कि ओकरा कृष्ण चाही.
पुकार गूंजतो बा आ चिचिआ के शान्तो हो जात बा.
कान्हा के मूरते रहि गइल बा आ हमनी के उनका के शाश्वत मानलो छोड़ दिहले बानी जा.
बुझात बा अब कहीं कंस नइखे, कवनो बासुदेव जेल में नइखन, भा अब कवनो देवकी के गरभ कचारल नइखे जात.
डल झील सुनगत बा, असम के जंगल बिलखत बाड़े, तमिलनाडु के अपने राग बा, दिल्ली का जिनिगी में घोराइल दहशत, योगेश्वर के जोगिया रंग के आतंक के प्रतीक बना दिहल बा. कहीं त ..
घर घर मथुरा, जन जन कंसा
इतने श्याम कहाँ से लाऊं ?
ओह राति जब कान्हा के कपारे उठवले वासुदेव उफनात जमुना पार कइले रहले त उनका आँखि में जुग बदले के सपना रहल होखी. अधर्म पर धर्म के जीत होखही के चाहीं. कालिया नाग के फन कचरला के जरुरत रहुवे. कंस के तानाशाही बदलाव खोजत रहे, बाकिर आजु के शिशुपाल करोड़न गारी बकत चौके चौक खाड़ बाड़न. कंस के जिहादी आजु नक्सल बन गइल बाड़े, जरासंध पसर के आजु के चीन आ पाकिस्तान बन गइल बा.
व्यवस्था का अन्याय से नाराजगी केकरा में ना होला ?
साहित्यकारन खातिर लेखन बनि जाला ई नाराजगी, बाकिर नेतवन खातिर फैशन बा, विद्यार्थियन खातिर विवाद बहस बा, त आम आदमी अबहियो एही सोच में रहत बा कि, के केहू राजा बनि जाव ओकरा का ?
कृष्ण उदाहरण बाड़े सत्ता समाज खातिर आ ओहि हिसाब से बदलावो होखे के चाहीं. कृष्ण दिशा देखावेले कि व्यवस्था का खिलाफ बतकुच्चन कइल बहुते आसान होला बाकिर ओकरा के जनानुरूप बनावे खातिर सही नजरिया होखल चाहीं आ एकरा खातिर अपना के तइयार करे के पड़ी. कृष्ण बिना सोचावट वाली क्रान्तियन के पक्षधर ना हउवें, हर बेरा बंदूक ले के, लाल सलाम.. बोलले से बात ना बनेला. बेर बेर हर हर महादेव भा अल्लाह ओ अकबर बोललो से मतलब ना सधेला. कबो मथुरा बचावे के पड़ेला त कबो द्वारिका बसावहू के पड़ेला.
कृष्ण राजा ना रहले जबकि उनका एक इशारा पर कतना राजमुकुट उनका चरणन में समर्पित हो सकत रहुवे.
आराध्य खाली अगरबत्ती देखावे खातिर ना होले, उनका बतावल राह पर चलहू के पड़ेला. कृष्ण कवनो आदमी के महानता के ओह शिखर पर चहुँपे के यात्रा होला जहवाँ से ईश्वर के सत्ता शुरु होला. धर्म के स्थापना बहुते महाल उद्देश्य होला आ धर्म कवनो आराधना पद्धति, रिलीजन भा मजहब, के नाम ना होला.
धर्म ऊ ह जहाँ मानवता निडर बनि सके, जवना खातिर हो सकेला कि भीष्मो पर हथियार उठावे के जरुरत पड़ि जाव भा धर्मराजो से ई कहवावे के जरुरत पड़ि जाव कि .. अश्वत्थामा हतो, नरो वा कुंजरो…. काहे कि आखिर में दुर्योधन के खतम होखही के पड़ी आ सत्ता के आँख मिल जाई.
बाकिर ई सोचावट आजु कहवाँ बा ? सबेरे का चाय का संगे सरकार के कोसले भर से बात बनि जाले. सभ केहू इहे मानेला कि कुछ बदलाव चाहीं बाकिर का ? आ के ले आई ?
कृष्ण सभेकुछ ढोवेले, सगरी योग क्षेम…. बाकिर अर्जुन बनि जाये के साहस कतना लोग में बा ? कृष्ण का बाद समय पाँच हजार साल बिता लिहले बा. एकरा के दुर्भाग्ये कहल जाई कि आजु बहुतेरे महाभारत लायक माहौल तइयार हो गइल बा. हर विकसित आ विकासशील राष्ट्र ब्रह्मास्त्र का उपर बईठल बा. आन्हर परमाणु अस्त्र आ हालात अश्वत्थामा जइसन कि ई अस्त्र वापिस लवटि के तूणीर में ना आ सके.
सगरी के सगरी मानव जाति के अंत बस एकही संधान पर हो सकेला बाकिर कृष्ण कहाँ बाड़े ?
हमनी के मासूमियत के का कहल जाव कि हमनी का एह इन्तजार में बानी जा कि कवनो कान्हा आई आ हमनी के लड़ाई लड़ी. काहे कि ऊहे कहले रहुवे… यदा यदा हि धर्मस्य… ऊ इहो कहले रहुवे कि कर्मण्येवाधिकारस्ते….
कण कण में कृष्ण बाड़न, कण कण कृष्ण बनि सकेला.
न निरोधो न चोत्पत्तिर्न बद्धो न साधक:
न मुमुक्षंर्न वै मुक्त: इत्येषा परमार्थता.


पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार के संपादक हईं आ ई लेख उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखले बानी. अँजोरिया के नीति हमेशा से रहल बा कि दोसरा भाषा में लिखल सामग्री के भोजपुरी अनुवाद समय समय पर पाठकन के परोसल जाव आ ओहि नीति का तहत इहो लेख दिहल जा रहल बा.अनुवाद के अशुद्धि खातिर अँजोरिये जिम्मेवार होखी.

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