– रामरक्षा मिश्र विमल
शास्त्रन में तीज के हरितालिका नाम से जानल जाला. “हरतालिका” शब्दो एह ब्रत खातिर खूब प्रचलित बा. भादो के अँजोर में तृतीया तिथि के एकर अनुष्ठान कइल जाला. पत्नी खातिर “तीज” आ बेटा खातिर “जिउतिया” से बड़ ब्रत ना मानेलिन मेहरारू लोग. ई मान्यता बा कि अखंड सौभाग्य खातिर सभ स्त्री लोग एह ब्रत के करेली. अइसन मानल जाला कि एह ब्रत के सबसे पहिले पार्बतीजी भगवान शिव के अपना पति का रूप में प्राप्त करे खातिर कइले रही. तबे से एह ब्रत के प्रचलन शुरू हो गइल. कहीं-कहीं एह ब्रत के कुँआर लइकीओ करेली सन जेहसे उहनी के मन लाएक पति मिल सके, बाकिर अइसन बहुत कमे सुने के मिलेला.
ब्रत के नामकरण आ बिधान
एह ब्रत के नामकरण के कारण “हरितालिका ब्रतकथा” में एह प्रकार बतलावल गइल बा – “अलिभिर्हरिता यस्मात्तस्मात्साहरितालिका”. माने भगवान शिवजी पार्वती जी से कहतानी कि तोहरा के दुखी देखि के तोहार सखी सभ तोहराके जंगल में हर ले गइल रही सन, एही से एह ब्रत के नाम हरितालिका परल. तीज के ब्रत निर्जला आ निराहार रहिके कइल जाला. रात में शिव-पार्बती जी के पूजन कइल जाला. कई गो स्त्री मिलिके एक साथ पूजन करेली आ रात्रि-जागरण करेली. दोसरा दिन अन्न-जल से पारन कइल जाला. एह दिन गोझिया, अनरसा का साथ-साथ तरह-तरह के पकवान आ मिठाईओ चढ़ावल जाला. तीज से एक दिन पहिले के सँझवत के नहा-खा होला, जब नहा धोके पूरी तरह से शुद्ध भइला का बादे बिना प्याज-लहसुन के बिल्कुल शाकाहारी सात्विक खाना खाइल जाला.
तीज के कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवी पार्बतीजी भगवान शिवजी के अपना वर रूप में प्राप्त करे खातिर तीज ब्रत के कइले रहली. महाराज हिमालय अपना बेटी पार्वती के बियाह नारदजी के आग्रह पर भगवान बिष्णुजी से तय क देले रहन. ई जानकारी मिलला प पार्वतीजी बहुत दुखी भइली काहें कि ऊ शिवजी से प्रेम करत रही. उनका सखियन से उनकर दुख बर्दाश्त ना भइल त ऊ पार्वतीजी के जंगल में भगा ले गइली सन, जहाँ ऊ खूब तपस्या कइली. ओ जंगल में नदी किनारे बालू के एगो शिवलिंग बनाके जंगली फूल, बिल्वपत्र आदि से पूजा कइली. रात-दिन भूखे-प्यासे रहिके जंगल में शिवलिंग के सामने शिवजी के ध्यान करत बहुत दिन गुजार दिहली ऊ. उनका अटूट भक्ति से खुश होके एक दिन शिवजी उहाँके इच्छा पूरा होखे के बरदान दिहलीं. जब पार्बतीजी भगवान शिवजी के अर्धांगिनी भइलीं त उहाँसे प्रार्थना कइलीं कि कवनो अइसन ब्रत बताईं जवना से मनुष्य के सभ मनोकामना पूर्ण होखे. तब भगवान शिवजी उहाँके तीज के पावन ब्रत बतवलीं, जवना से पार्बतीजी भगवान शिवजी के प्राप्त कइले रहीं.
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