– नूरैन अंसारी
आज जवन नया बा ऊ काल्हुवे पुरान हो जाई.
ढेर चुप रहबऽ त आपनो अनजान हो जाई.
जले एक में चलत बा घर, चलावत रहऽ,
पता ना कब केकरा से दूर ईमान हो जाई.
मत करऽ गुमान एतना तू अपना कोठी पर,
एक दिन निवास तहरो शमसान हो जाई.
काहे पेट काट के बटोरत बाडऽ धन-संपत एतना,
काल होई अइसन औलाद, कि सब जियान हो जाई.
काहे दुःख से घबडात बाड़ऽ संकट के घडी में,
सब्र करबऽ त रतियो बिहान हो जाई.
कोशिश मत करीहऽ बसे के शहर में भाई,
ना त अपने घर में दुर्लभ, पहचान हो जाई.
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bhojuriya samaj mahan ho jai
kamal ba ho
एतना सांच मत कह ऐ!. नुरैन भाई
ना त इ दुनिया परीशान हो जाई, ना त इ दुनिया परीशान हो जाई,
ऐसन सुन्नर रचना खातिर साधुवाद
और लिखीं खूब लिखीं
भोजपुरी पढ़ी आ भोजपुरी लिखीं
वाह नूरैन भाई, का बात कहले बानीं अपना ए रचना में। जीवन के पूरा निचोड़ आ गईल बा एहिमें। बहुत सुन्दर प्रस्तुति बा।
“काहे पेट काट के बटोरत बाडऽ धन-संपत एतना,
काल होई अइसन औलाद, कि सब जियान हो जाई.”
एही बात के आदि शंकराचार्य जी “चर्पट पञ्जरिका स्तोत्र” मे कुछ एह तरह कहले बानीं कि –
“यावद् वित्तोपार्जन सक्तः तावद् निजपरिवारो रक्तः।
पश्चात् धावति जर्जरदेहे वार्त्तां पृच्छति कोऽपि न गेहे॥”
एह से संबंधित ई भोजपुरिया लोकोक्ति कि “पूत कपूत त का धन संचय” भी विचारणीय बा।
नूरैनजी, आपकी ए रचना के जबाब नइखे….गागर में सागर…एकदम सत्य। सादर।।