– हीरा लाल ‘हीरा’
जड़वा लपकि के धरेला गरदनवाँ
देंहियाँ के सुई अस छेदेला पवनवा !
नस -नस लोहुवा जमावे सितलहरी
सुन्न होला हाथ गोड़, ओढ़नो का भितरी
थर- थर काँपs ताटे सगरे बदनवाँ !
देहिया के सूई अस छेदेला पवनवा !
धइलस उखिया के, अझुरा के लासा
चीनी मिल-मलिकन क होखेला तमासा
पालि-पोसि उखिया के, फूँकेला किसनवा !
देहिया के सूई अस छेदेला पवनवा !
करजा क खाद-बीज, कर्जे क खेती
निमनो जजतिया प’ चढ़ि गइल रेती
हमरी बिपतिया प’ हँसेला जमनवाँ !
देहिया के सुई अस छेदेला पवनवा !
दिनवाँ दुबर लागे, रतिया मोटाइल
ओकरा अन्हरिया में चनवों हेराइल
गइले सुरुज हाय, छोड़ि मैदनवाँ !
देहिया के सुई अस छेदेला पवनवा !!
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मरम छूवे वाली अरथवान रचना ।
बहुत बढ़िया रचना…