– डा0 अशोक द्विवेदी

DrAshokDvivedi

नेह-छोह रस-पागल बोली
उड़ल गाँव के हँसी-ठिठोली.

घर- घर मंगल बाँटे वाली
कहाँ गइल चिरइन के बोली.

सुधियन में अजिया उभरेली
जतने मयगर, ओतने भोली.

दइब क लीला-दीठि निराली
दुख- सुख खेलें आँख मिचोली.

हिलल पात, पीपर-मन डोलल
पुरुवा रुकल त, पछुवा डोली.

आपन-आपन महता बाटे
का माटी, का चन्नन रोली.

नेह के दरिया ऊहे पँवरी
जे हियरा के बान्हन खोली.

आपन -आनन चीन्हे रस्ता
जे जाई ओकरे सँग हो ली.

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कुछ त कहीं......

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