भउजी हो!
का बबुआ?
दमदा त बड़ा दमदार निकलल.
आजुए थोड़े निकलल ह. ऊ त शुरुए से दमदार रहल. ना त अइसन पिरिया बेटी ले के चल जाइत.
बाकिर देखते देखत कतना के औकात हो गइल ओकर !
का करे? सास ससुर कुछ दिहले ना कहलें कि ए बबुआ बेटी दे दिहनी बाकी तू खुदे बटोर लीहऽ. आ ऊ इहे कइलसि त एहमें खराबी का बा? के अपना दमाद के ना देव औकात भर?
काश हमरो सास ससुर अइसने रहीत.
त फेर हमनी में से केहु जियतो ना बाँचल रहीत, ए बबुआ.
ठीके कहत बाड़ू भउजी. छोड़ऽ एह सब बात के. बाकिर पता ना काहे लोग कहत आइल बा कि “नानी के धन, बेइमानी के धन, आ जजमानी के धन फरे ना!”
ए कहाउत में ससुरारी के धन कहाँ कहल बा ?
बात त ठीक पकड़लू. बाकिर लोग पकड़े तब नू.
त सोझ सोझ काहे ना बतियाईं?
अरधो कहे त सरबो बूझे, सरबो कहे त बरधो बूझे. आ बरधा तब सींग नू मारे लगीहें स भउजी.
ठीक कहतानी बबुआ. आईं अँचरा में लुका जाईं.
0 Comments