पोखरा में मछरी, नव नव कुटिया बखरा

by | Jan 4, 2024 | 0 comments


दू बरीस से हर बेर गाँव के पोखरा के अधिका मछरी मुखिये जी का घरे जा रहल बा. कारण कि उनुका लगे महाजाल बा आ जब पोखरा में ऊ आपन महाजाल फेंकेलें त निकहा मछरी उनुके जाल में फँस जाली सँ. मुखिया जी के विरोधी आपन आपन जाल फेंकेले त कई बेर ओह लोग के जाल अपने में अझूरा जाला आ जवन मछरी केहू का जाल में फँसे जातो रहली सँ उहो निकल जाली सँ आ ई लोग आपन आपन जाल के सझुरावते रहि जाला. आ ओहू ले बड़ झगड़ा एह बात के हो जाला कि हमरा टोला का किनार से दोसर के जाल ना डाले देब. सभे अपना अपना किनार से मछरी मारे के कोशिश करो, हमरा टोला का ओर मत आवे लोग.

बाकी एह बरीस ई लोग बड़की पंचायत बइठावल लोग कि कवनो ना कवनो तरह एकराय हो जाय आ सगरी टोल के लोग आपन-आपन जाल मिला के अइसन महाजाल बुने कि अधिका मछरी एह लोग का महाजाल में फँसे के उमेद बनि जाव. बाकिर संगही संगे एक दोसरा के जाल के बेकार बतावत रहे के बीमारी एह लोग के एक मत होखे नइखे देत. एह फेर में अबहीं ले चार गो बइठका हो चुकल बा बाकिर एक राय बने-बनावे में सफलता नइखे मिलल एह लोग के. पिछला बइठकी में एह बात के चेतावनी देबे वाला कुछ लोग कहल कि बइसाख बीतत बीतत तय हो जाए के चाहीं कि जाल में फँसल मछरियन में से केकरा केकरा कव कव गो मछरी दीहल जाई. एकरे ला एगो पुरान कहावतो ह कि पोखरा में मछरी, नव नव कुटिया बखरा. पता ना मछरी भेंटाई कि ना बाकिर ओकर बखरा ला पहिलहीं से सिर फुटउवल हो रहल बा. पता ना सावन भादो आवत-आवत एह लोग में लाठी-भाला निकली कि कवनो राय बन पाई.

ओने मुखिया जी मगन बाड़न आ पोखरा के मछरियन के दाना डाले के शुरुआत क दिहले बाड़न. उनुकर कोशिश बा कि मछरियन के उनुकर दाना खाए के आदत पड़ि जाव. उनुकर प्लान इहो बा कि अबहियें से जाल डाल-डाल के मछरियन के मन के डर खतम कर दीहल जाव. अबहीं मछरी छोट छोट बाड़ी सँ एहसे जाल में आवे-जाए के ओकनी के आदत पड़ल रही आ जब आषाढ़ में ऊ आपन जाल फेंकिहें त मछरी आ त जइहें बाकिर निकल ना पइहें काहें कि तबले ऊ सभ उनुकर दाना खा-खा के अतना मोटा गइल रहीहें कि जाल से निकल ना पइहें.

मुखिया जी इहो जानत बाड़न कि विरोधी एक दोसरा के जाल तूड़े-फाड़े में अइसन महारत हासिल क चुकल बाड़ें कि ऊ आपन महाजाल तइयारे ना कर पइहें. गाँव के बाकी लोग मुसुकिया-मुसका के ओह दिन के इंतजार में बाड़ें जहिया लोग आपन-आपन जाल फेंकिहें तहिये पता चली कि केकरा-केकरा घरे कतना-कतना मछरी जा पइहें. अबहियों लोग के पूरा भरोसा बा कि मुखिया जी का महाजाल से जवन छोट-मोट मछरी निकल पइहें उहे बाकी लोग के जाल-बिटोर में फँस पइहें. बशर्ते ओह दिन ले ई लोग एक दोसरा के माथ ना फोड़ देव.

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