वरमाला

- कामता प्रसाद ओझा ‘दिव्य’ अन्हरिया..... घोर अन्हरिया.... भादो के अन्हरिया राति. छपनो कोटि बरखा जइसे सरग में छेद हो गइल होखे. कबहीं कबहीं कड़कड़ा के चमकि जाता त बुझाता…