काल्हु भोरे जब ले नींद टूटल तबले खबर चारो ओर पसर चुकल रहे कि संसद पर हमला के आरोपी अफजल गुरू के फाँसी चढ़ा दिहल गइल. कुछ दिन पहिले अजमल कसाबो के एही तरह फाँसी दे दिहल गइल रहे. माने के पड़ी कि सरकार तय कर लेव त कुछूओ कर सकेले आ केहूं चूं तक ना कर पाई. आ एही पर सवाल उठत बा कि आखिर ऊ कवन कारण रहल जे अबहीं ले अफजल गुरु के फाँसी लटकावे से रोकले रहुवे. काहे तब के गृह मंत्री पी चिदम्बरम गलत बयानी कइले रहलें कि अफजल गुरू के मामिला राष्ट्रपति का सोझा पड़ल दया याचिका के कतार में पीछे बा? कहाँ गइल ऊ कतार? कइसे कसाब आ अफजल गुरू के अचके में फाँसी दे दिहल गइल आ जेले में ओह लोग के दफनाईओ दिहल गइल? कहीं ना कहीं कवनो कारण जरूरे बा जवना से ई सब भइल भा ना हो पावल. कहीं शिन्दे के “हिंदू आतंकवाद” वाला बयान एही कड़ी के कवनो हिस्सा त ना रहल? काहे कि एक जमाना में शिन्दे के फोटो संघ का कार्यक्रम में संघ प्रमुख बाला साहब देवरस का संगे सामने आइल बा. कहीं अफजल गुरू के फाँसी से होखे वाला बवाल के अनेसा कम करे के कोशिश त ना रहल आपन हिंदू विरोधी छवि बनावल? साँपो मर गइल आ लठियो ना टूटल!
सवाल बहुते बा. बहुते जगहा उठावलो जात बा. बाकिर जबाब नदारद बा. पूछे वाला इहो पूछत बाड़ें कि अफजल गुरू के फाँसी के अचके अतना हड़बड़ी कइसे हो गइल? कहीं मोदी के हवा निकाले के कोशिश त ना ह ई? कहीं संसद के आवेवाला सत्र में भाजपा के संभावित विरोध के खटिया खड़ा कर देबे के कोशिश ना ह ई? कहल जाला कि युद्ध आ प्यार में सबकुछ जायज होला बाकि हमनी के भारतीय परंपरा सब कुछ खुला में करे के रहल बा. पीठ पीछे भा ढुका लाग के अपना दुश्मन के मारे खातिर भगवान राम तक के आलोचना झेले के पड़ल रहे. हमनी के युद्ध हमेशा खुला में शंख आ दुंदुभि बजा के होत आइल बा. जयपुर के चिंतन शिविर में शिन्दे कहीं उहे शंख त ना बजवले रहलें? आ अब अगिला कड़ी में कवनो हिंदू नेता के निशाना पर लेबे के इरादा त नइखे कहीं? आवे वाला समय में एह सगरी सवालन के जबाब मिलबे करी तबले सोचल जाव आ अंदाज लगावल जाव.
कुछ आतंकीसमर्थकन के कहना बा कि अफजल के एह तरह से फाँसी दिहला के जरूरत ना रहे. देबहीं के रहे त पहिले से बता के, घर परिवार वालन के बोला के दिहल चाहत रहे. ओकर अंतिम संस्कार ओकरा परिवार के करे दिहल चाहत रहे. दोसरा तरफ कुछ लोग इहो सवाल उठावत बा कि जेले के कब्रिस्तान बनावे में काहे लागल बिया सरकार? काहे ना एह लोग के समुद्र में दफना दिहल गइल? अपना के मानवाधिकार समर्थक कहे वाला लोग बेकसूर लोग के जान जाए पर कबो चिंतित ना होखे, बेकसूरन के जेल गइलो पर कुछ ना बोले बाकिर कबो कवनो आतंकी मरा जाव, कवनो नक्सली के सजा मिल जाव तब एह सियारन के हुँआ हुँआ सुने लायक हो जाला. अबहियों कुछ कुकुर फेंकरे में लागल बाड़ें. बाकिर ओह फेंकरला पर धेयान दिहला के जरूरत नइखे अगर सरकार सख्ती से निबटे के तय कर लेव त. कहले गइल बा कि बड़ बड़ भूत कदम तर रोवसु मुआ माँगे पुआ!
– ओमप्रकाश सिंह
सरकार के इ कदम स्वागत योग्य बा….पर इ सब ओट के राजनीति बा…..10-12 बरिस के दिन…बाप रे बाप……खैर जवन भी होखे…अबहिन त जय हिंद बोलीं…अउर आगे-आगे देखत जाईं सरकार का का करे ले चुनाव ले…..भारतीय जनता बहुत जल्दी सब कुछ भूला जाले अउर ओकरा खाली टटका लउकेला…..त इ हो टटके बा….अउर भी बहुत कुछ होई….
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पर ए बेरी तख्त भी बदली अउर ताज भी….अबकी आई मोदी के सुराज जी।।