‘विविधा’ सुप्रसिद्ध आचार्य पांडेय कपिल द्वारा संपादित भोजपुरी पत्रिकन के संपादकीय आलेखन के संग्रह हऽ. ई सभ आलेख उहाँ के द्वारा संपादित लोग, उरेह, भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका (त्रैमासिक) आ भोजपुरी सम्मेलन पत्रिका (मासिक) के दिसंबर, 2001 तक के अंकन में छप चुकल बाड़े सन. एह में भोजपुरी से जुड़ल हस्तियन के जन्म, मृत्यु आ कवनो खास अवसर पर जब उहाँ का इयाद कइले बानी त जइसे ऊ सभे परिचयात्मक थाती हो गइल बा. भविष्य में ऊ उहाँ सभ पर शोध करे खातिर एगो मानक सामग्री स्रोत हो सकता. एह लेखकन में पुरान त पुरान, नया से नया लोगो के उहाँ का शामिल कइले बानी. आचार्य महेंद्र शास्त्री, रघुवंश नारायण सिंह, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी, सिपाही सिंह श्रीमंत, पांडेय नर्मदेश्वर सहाय, डॉ. मुरलीधर श्रीवास्तव, डॉ. उदय नारायण तिवारी, कुंज बिहारी कुंजन, आचार्य देवेन्द्र नाथ शर्मा, मुहम्मद खलील, शास्त्री सर्वेंद्रपति त्रिपाठी, रामेश्वर सिंह काश्यप, महेंद्र गोस्वामी, राहुल सांकृत्यायन, भोलानाथ गहमरी, मूसा कलीम, प्रो. रामेश्वर नाथ तिवारी, डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय, गणेश चौबे, राम नगीना राय, नरेन्द्र शास्त्री, रासबिहारी पांडेय, उमाकांत वर्मा, प्रो.सतीश्वर सहाय वर्मा सतीश आदि स्थापित साहित्यकारन का सङही शशिभूषण सिंह शशि जइसन नवोदित रचनाकारो के ओही सम्मान का साथे याद कइल गइल बा .
एह पुस्तक के 1975 से 2001 तक के 26 बरिस के भोजपुरी साहित्य आ संस्कृति के धड़कनो का रूप में देखल जा सकऽता. चाहे ऊ भोजपुरी अकादमी के निर्माण होखे भा अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन, विश्व भोजपुरी सम्मेलन, अखिल भारतीय भोजपुरी भाषा सम्मेलन आदि के नया-नया गतिविधि होखे, संपादक के लेखनी अपना जिम्मेदारी के बखूबी समुझले बिया. भोजपुरी पत्र पत्रिकन आ किताबन के प्रकाशन, विश्वविद्यालयन में भोजपुरी के पढ़ाई, भोजपुरी के आठवीं अनुसूची में शामिल करावे के माँग आदि विषयो के संपादकीय के विषय बनावल गइल बा आ सुनियोजित ढंग से भोजपुरी आंदोलनो के बढ़ावा दिहल गइल बा.
‘भोजपुरी में अराजक स्थिति’ जइसन लेखो से संपादक के चिंता समझ में आवऽता. एह पुस्तक में भाषा के मानकीकरनो पर लेखक संवेदनशील बा आ एह अराजक स्थिति से उबरे में कवनो कोर कसर नइखे छोड़ल चाहत. ‘अर्ध अ के चिन्ह(ऽ) के प्रयोग’, ‘भाषा आ लिपि का साथे मनमानी मत करीं ‘ आ ‘चंद्रविंदु के प्रयोग’ जइसन आलेख एह दिशाईं बहुत महत्वपूर्ण बाड़े सन. मानवाधिकार के उल्लंघनो पर इहाँ के लेखनी खूब चलल बिया. “’अमानुषिक अपराध : सामाजिक कलंक’ आ ‘फीजी सरकार के अत्याचार’” एही तरह के आलेख बाड़े सन.
सिलसिलेवार समय के नब्ज टटोरल आसान काम ना होखे, बहुत जागरूक रहेके परेला. अपना संपादकीय में ‘कारगिल’ जइसन राष्ट्रीय चिंता आ गर्वो पर लेखक सक्रिय लउकऽता. एह तरह के काम हिंदी में जरूर मिल जाई बाकिर हमरा जनते भोजपुरी में ई पहिल ग्रंथ बा, जवना मे पर्याप्त सामग्री अपना स्तरीय रूप में बाटे. कुल मिलाके कहल जा सकऽता कि ‘विविधा’ अपना छिटपुट रूप में भोजपुरी साहित्य के एगो संदर्भ ग्रंथ बाटे आ भविष्य में शोधार्थी लोग एकर खूब प्रयोग करिहें.
समीक्षक : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
समीक्ष्य कृति : विविधा (संपादकीय आलेख संग्रह)
लेखक : पांडेय कपिल
प्रकाशक : भोजपुरी संस्थान, 3/9, इंद्रपुरी, पटना- 800024
पहिल संस्करण : अक्टूबर, 2011, पृष्ठ संख्या : 482 , मूल्य : बारह सौ रुपया
भोजपुरी में एह तरे के ग्रन्थन के अभाव बा।
आचार्य जी के संग्रह के साथे विविधा के समीक्षा से भोजपुरी प्रेमी लोग के ई त जरुरे पता चलि जाई कि भोजपुरी के भले केतनो सरकारी उपेक्षा होखे, बाकिर एकर सोर बड़ा मजबूत बा।
बहुते बधाई!
टिप्पणी खातिर बहुत-बहुत धन्यवाद |
विमल
आचार्य पांडेय कपिल के बहुत -बहुत बधाई .
विविधा के जवन समीक्षात्मक वर्णन कइल गइल बा ए में ए किताब की महानता के बहुते सुन्नर तरीका से बयां कइल गइल बा…ए उच्च स्तरीय किताब के सुघड़, यथार्थ समीक्षा इहां प्रस्तुत करे खातिर बहुत-बहुत आभार..पूरा विस्वास बा की इ ग्रंथ भोजपुरिया साहित्य में मील के पत्थर साबित होई अउर भोजपुरिया शोधार्थियन के एगो समग्र शोध की साथे एगो नया मुकाम हासिल कइले में मदद करी।। आभार।।