बांसगांव की मुनमुन – 4

( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद ) धारावाहिक कड़ी के चउथका परोस —————————————– ( पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.) एने…

बांसगांव की मुनमुन – 3

– दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद धारावाहिक कड़ी के तिसरका परोस ( पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.) मुनमुन जइसे लक्ष्मी…

बांसगांव की मुनमुन – 2

(दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद) धारावाहिक कड़ी के दूसरका परोस —————————————– पहिलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिलो ओकरा के पढ़ लीं.) गिरधारी राय के लड़िका…

बांसगांव की मुनमुन

(दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद) ‘भतार छोड़ि देब बाकिर नौकरी ना ।’ बांसगांव के मुनमुन के ई आवाज गांव आजु क़स्बने में ना, बलुक सगरी निम्न मध्यवर्गीय…

बनचरी (भोजपुरी के कालजयी उपन्यास के सतवीं कड़ी)

– डा॰ अशोक द्विवेदी फजीर होते, भीम आश्रम से निकलि के सीधे जलाशय का ओर चल दिहलन. माता के प्रातः दरसन आ परनाम का बाद, उनसे कुछ सलाह निर्देश मिलल.…

बनचरी (भोजपुरी के कालजयी उपन्यास के छठवी कड़ी)

– डा॰ अशोक द्विवेदी अइसे त प्रकृति के एक से बढ़ि के एक अछूता, अनदेखा मनोहारी रूप ओह विशाल बनक्षेत्र में रहे बाकिर कई गो मुग्ध करे वाला जगह, हिडिमा…

बनचरी (भोजपुरी के कालजयी उपन्यास के पँचवी कड़ी)

– डा॰ अशोक द्विवेदी स्नान-पूजा का बाद जब कुन्ती अनमनाइल मन से कुछ सोचत रहली बेटा भीम का सँगे बाहर एगो फेंड़ का नीचे हँसी-ठहाका में रहलन स. हिडिमा के…

बनचरी (चउथी कड़ी)

– डा॰ अशोक द्विवेदी एगो विशाल बटवृक्ष का नीचे पत्थर शिला खण्ड का टुकड़न से सजाइ के एगो चबूतरा बनावल रहे. वृक्ष का एकोर ओइसने पत्थर के चापट टुकड़न के…

बनचरी (दुसरकी कड़ी)

– डा॰ अशोक द्विवेदी भयावह आ भकसावन लागे वाला ऊ बन सँचहूँ रहस्यमय लागत रहे. जब-तब उहाँ ठहरल अथाह सन्नााटा अनचीन्ह अदृश्य जीव जन्तु भा पक्षियन का फड़फड़ाहट से टूट…

बनचरी (पहिला कड़ी)

– डा॰ अशोक द्विवेदी गंगा नदी पार होत-होत अँजोरिया रात अधिया गइल रहे. दुख आ पीरा क भाव अबले ओ लोगन का चेहरा प’ साफ-साफ देखल जा सकत रहे. छछात…

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