बतकुच्चन – ३

by | Oct 18, 2010 | 0 comments

एगो चर्चा में शब्द आ गइल कि रउरा त नायक हईं. बस मन में बिजली जस चमक उठल कि नायक के होला, नायक का ह ? आ याद पड़ल कि पिछला संस्करण में हम बतकुच्चन के दू गो कड़ी लिखले रहुवीं. फेर बात आइल गइल हो गइल आ बतकुच्चन दिमाग से उतरि गइल.

बाकिर नायक शब्द से फेर बतकुच्चन करे के मन कर दिहलसि. सोचे लगनी कि नायक के ? ऊ जे कुछ नया करेला भा ऊ जे अगुवा होला ? अगुवा के एगो पारम्परिको मतलब निकलेला, ऊ जे शादी बिआह में आगा आ के सब कुछ तय करावेला. जे कनियवो के भाई लेखा होला आ दुलहवो के. जेकरा मन में दुनु पक्ष के हित रहेला आ अक्सरहा ऊ कवनो ना कवनो पक्ष के हितई के होखबो करेला. ल, बाति कहाँ से कहाँ चलि आइल.

हितई आ नातेदारी में का फरक होला ? हित के, नातेदार के ? जे हित सोचे ऊ हित आ जे बस नातेदारी निबाहे ऊ नातेदार. बाकिर बाति अतना आसान नइखे. परिवार के महिला पक्ष के जे नातेदार होला ऊ परिवार के हित कहल जाला आ जे परिवार के पुरुष पक्ष के नाता में आवेला ऊ नातेदार-रिश्तेदार कहाला. माने कि नाना, नानी, मामा, मामी, साला, सरहज, बहनोई, भगिना, भगिनी, दामाद, नाती त हित हो गइले आ चाचा, दादा, भाई, भतीजा, बेटा, बाप, दादा, पोता नातेदार-रिश्तेदार. बाकिर एह नातेदारी में नाती आ पोता के झगड़ा कइसे आ गइल ? बेटी के बेटा त नाती हो गइल आ बेटा के बेटा पोता !

शुरु त भइल रहीं नायक से बाकिर अगुआ बीच में आ के काम बिगाड़ दिहले. से कवनो जरुरी नइखे कि जे अगुआ होखी ऊ सही मायने में लीडरो होखी. अगुआ निमनो के हो सकेला आ बाउरो के. बाकिर नायक त उहे कहाये के चाहीं जे बास्तव में नया कुछ करे वाला होखे, कवनो नया राह निकाले वाला होखे. शायद एही से नायक आ नाहक सुने में मिलल जुलल बुझाला कि नायक कई बेर नाहके साँप का बियर में हाथ डालि देला.

साँप का बियर पर याद आइल कि साँप के बियर के बियर कहल जाला बाकिर मूस के बियर के मूसकोइल. से काहे ? आ एह पर इहो याद आइल कि साँप के त बेंवते नइखे बियर खोने के. ऊ त मूसे के खोनल भा कवनो दोसर जानवर के खोनल बियर में घुस के पनाह लेला. एही सब चक्कर में तोपना-पेहान के मामिला अबकियो छूटल जात बा. बाकिर अबकी हम छूटे ना देब.

तोपना कवना के कहल जाई आ पेहान कवना के ? बाति त बहुते साफ बा, जवना से तोपल जाव से तोपना आ जवना के पहिनावे के पड़े से पेहान. अब केहू कह सकेला कि त फेर तोपना आ ढकना में का अन्तर बा ? कवना के तोपना कहल जाई, कवना के ढकना ? आ ढकना के ढकनी होले बाकिर तोपना के तोपनी ना. से काहे ?

अब फेर कबहियो एह सब पर चर्चा कइल जाई. आजु हमरा के चले दीं.

– बतबनवा


पिछलका बतकुच्चन पढ़ीं आ ओकरो से पिछलका.

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अँजोरिया के भामाशाह

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(1)
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सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
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