– परमानंद पाण्डेय
स्वामी विवेकानन्द जी कहले रहलीं की अगर हमके गौरव से जीयलें क भाव जगवावे क बा, त हमके अपने अन्तर्मन में राष्ट्र भक्ति क बीज के पल्लवित करे क होई, तबे राष्ट्रीय तिथि क आश्रय लेवे क होई.
ग़ुलाम बनाए रखे वाले परकीयन क दिनांक पर आश्रित रहे वाला व्यवहार बदले क होई. भारतीय तिथि हमरे मन में ई उद्घोष जगावेला कि हम धरती माई क पुत्र हईं, सूर्य चंद्र अउर नवग्रह हमार आधार ह. प्राणी मात्र हमरे परिवारिक सदस्य हउए तबे हमरे संस्कृति क बोध’ वसुधैव कुटुंबकम्’ क सार्थक्य सिद्ध होई.
ध्यान रहे कि सामाजिक विकृतिए भारतीय जीवन में दोस अउर रोग भर दिहले बा, जवना चलते कमज़ोर राष्ट्र के भू-भाग पर परकीय, परधर्मिकीय आक्रमण क के हम सभ के ग़ुलाम बना दीहले बा.
एही से सदियन से पराधीनता क पीड़ा झेले क पड़ल रहल. पराधीनता के कारन जवने मानसिकता क विकास भइल ओसे हमरे राष्ट्रीय भाव क क्षय हो गइल अउर समाज में व्यक्तिवाद, भय अउर निराशा क संचार होखे लागल.
जवने समाज में भगवान् श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक अउर अनेकेनेक ऋषि – मुनि लोगन क आविर्भाव भइल, जवने धरा-धाम पर परशुराम, वाल्मीकि, वशिष्ठ, भीष्म अउर चाणक्य जइसन दिव्य पुरुषयन क जन्म भइल, जहवां परमप्रतापी महाराज अउर सम्राटन क श्रृंखला क गौरवशाली इतिहास निर्मित भइल, उहवां क गौरवशाली परंपरे हमार वास्तविक हित कर सकी.
भारतीय सांस्कृतिक जीवन क विक्रमी संवत् से गहरा नाता ह. भारतीय नववर्ष चइत मास के शुक्ल पक्ष क प्रतिपदा के मनावल जाला. जेके विक्रमी संवत् क नया दिवसो कहल जाला.
हमार संस्कृतिए हमार गौरव ह
अइसने पूर्व प्रधानमंत्री श्री मोरारजी देसाई के जब केहू एक जनवरी के नववर्ष क बधाई दीहलसि त ऊ उत्तर दीहले रहलें कि कवने बात क बधाई बा? हमरे देश अउर देश के सम्मान क त ए नववर्ष से कवन सम्बन्ध नाहीं बा, अउरी न कबो रही.
इहे बात हम लोगनो के समुझावे क अउर समुझे क होई कि का एक जनवरी के साथे अइसन एकहू प्रसंग जुड़ल बा, जवने से राष्ट्र प्रेम जाग सकेला ?
न त ऋतु बदलल.. न मौसम
न त कक्षा बदलल… न सत्र
न त फसल बदलल…न खेती
न त पेड़ पउधन क रंगत न सूरज चाँदा सितारन क दिशा, न ही नक्षत्र !
ईस्वी संवत क नया वर्ष 1 जनवरी के अउर भारतीय नववर्ष (विक्रमी संवत) चइत शुक्ल प्रतिपदा के मनावल जाला. आईं देखल जाव कि दुनों क तुलनात्मक अंतर का होला –
- प्रकृति – 1 जनवरी के कवनों अंतर नाही ह जइसन दिसम्बर वइसने जनवरी! चइत मास में चारो तरफ फूल खिल जाला, पेड़न पर नया पत्ता आ जाला, चारो तरफ हरियाली यानी कि जइसे प्रकृतिओ नया साल मनावत होखे !
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वस्त्र – दिसम्बर अउर जनवरी में उहे वस्त्र, कंबल, रजाई, ठिठुरत हाथ अउर पैर ! चइत मास में सर्दी जा रहत होला, गर्मी क आगमन होखेवाला रहेला.
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विद्यालय क नया सत्र – दिसंबर जनवरी में उहे कक्षा, उहे सत्र, कुछ नया नाहीं.. जबकि मार्च अप्रैल में स्कूलन क रिजल्ट आवेला, नया कक्षा नया सत्र यानि कि विद्यालयनो में नया वर्ष.
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नया वित्तीय वर्ष – वर्ष दिसम्बर-जनबरी में कवनों खाता क बन्दिओ नाही होला.. जबकि 31 मार्च के बैंक क आडिट होला, कलोजिंग होला, नया बही खाता खोलल जाला. सरकारी कार्यालयनो में काम काज क नया सत्र शुरू होला.
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कलैण्डर – जनवरी में नया कलैण्डर आवेला.. चइत में नया पंचांग आवेला ! ओही से सभ भारतीय पर्व, विवाह अउर अन्य महूर्त देखल जाला. एकरे बिना हिन्दू समाज के जीबन क कल्पनो नाही कइल सकल जात ह, एतना महत्वपूर्ण ह, इ चइत क कैलेंडर यानि पंचांग !
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किसाननो खातिर नवका वर्ष – दिसंबर जनवरी में खेतन में उहे फसल होला.. जबकि मार्च-अप्रैल में फसल कटेला नया अनाज घर में आवेला, त किसाननो क नया वर्ष अउर नया उत्साहो चइते में होला.
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उत्सव मनवले क विधि – 31 दिसम्बर क रात नया साल के स्वागत के खातिर लोग जमके मदिरा पान करेलें, हंगामा करेलें, रात के पी के गाड़ी चलवले से दुर्घटना क सम्भावना, छेड-छाड जइसन वारदात, पुलिस प्रशासन बेहाल अउर भारतीय सांस्कृतिक मूल्य क विनाश होला. जबकि “भारतीय नववर्ष व्रत से शुरू होला, पहला नवरात्र होला” घर घर मे माता रानी क पूजा होला. शुद्ध सात्विक वातावरण बनेला.
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ऐतिहासिक महत्त्व –
एक जनवरी क कवनों ऐतिहासिक महत्व नाही होला.. जबकि चइत प्रतिपदा के दिन महाराज विक्रमादित्य द्वारा विक्रमी संवत् क शुरुआत, भगवान झूलेलाल क जन्म, नवरात्र प्रारंभ, ब्रह्मा जी द्वारा सृष्टि क रचना इत्यादि क सम्बन्ध एह दिन से होला.
अंग्रेजी कलेंडर क तारीख अउर अंग्रेज मानसिकता के लोग के अतिरिक्त कुछ नाही बदलेला..आपन नव संवते असली नया साल होला.
जब ब्रह्माण्ड से लेके सूर्य चाँद क दिशा, मौसम, फसल, कक्षा, नक्षत्र, पउधा क नया पत्ती, किसान क नया फसल, विद्यार्थी क नया कक्षा, मनुष्य में नया रक्त संचरण आदि परिवर्तन होत ह, जवन विज्ञान पर आधारित ह.
अपने मानसिकता के बदलीं. विज्ञान आधारित भारतीय काल गणना के पहचानी.
हम सब 1 जनवरी के “केवल कैलेंडर बदलीं.. आपन संस्कृति नाहीं.”
आई जागीं अउर जगाईं, भारतीय संस्कृति के अपनाईं अउर आगे बढ़त रहीं.
पनपा गोरखपुरी, भारतीय नया वर्ष,
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