झुलवा झार के पहीर, झुलवा झार के पहीर

by | Mar 5, 2024 | 0 comments

भोजपुरी एल्बमन के दू गो बड़का सीजन आवेला, एक त फगुआ दोसरका सावन में काँवरिया. सोचनी कि देखीं कहीं परिवार संगे सुने जोग कवनो गीत लउक जाव त रउरा सभे के बता दीं. बाकिर फगुआ त फगुए होला – पुरनको जमाना में लोग गावत रहुवे – भर फागुन बूढ़ देवर लागे, भर फागुन.

कहे के मतलब कि साल के ई चालीस दिन मन के सगरी गंदगी निकाल देबे के सीजन होला. शायद पुरनिया लोग सोचले होखी कि चालीस दिन का बाद त कम से कम लोग नीमन बात करी, नीमन गीत गाई. बाकिर ओह लोग के का मालूम रहुवे कि एक दिन यूट्यूब के जमाना आ जाई. 4जी आ 5 जी के दौर आ जाई आ जिओ के नेट पैकेज. दिन भर में दू जीबी डाटा आ नाम मात्र के चार्ज. एह चलते उहे गीत सही हो गइल कि – कवन अभागा गाँजा बोवलसि रे, पियवा बउरा गइल. कवन पापी घोर के पिआवलसि रे पियवा बउरा गइल. अब त लागत बा कि इनारे में भाँग घोंटा गइल बा.

एक बेर के बात हऽ. हम ट्रेन में जात रहीं. दू चार गो नवही अपने में बतियावत रहलें. आ ओहि में से कवनो कहि दिहलसि – भवे भाव से, पतोहु चाव से. सुनते एगो बुढ़ऊ खिसिया गइलन. का फालतू के बात करत बाड़ऽ लोग. नवहिओ बाँव ना जाए दिहलसि – कहलसि कि बाबा ई कहाउत हमार बनावल ना हऽ, रउरे लोग के जमाना से चलत आवत बा.

अब त फगुआ, दिवाली, छठ में गाँवे आए-जाए के लकमो टूट गइल बा. पहिले कम से कम छठ का बेरा सगरी परिवार गाँवे जुटत रहुवे काहें कि माई छठ करत रहल. आ छठ में शामिल भइल पुण्य के बात होखत रहुवे. अब त कोलकाता, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, सूरत, हर जगहा छठ होखे लागल बा. नदी तालाब नाहियों बा त कवनो बात ना. घर का आंगन में भा छत पर एगो टब में पानी भर के ओकरे में खड़ा हो के छठ मना लीहल जात बा.

बाकिर एकरा चलते जवन पारिवारिक ताना-बाना टूट गइल ओकरा तरफ केहू के धेयान नइखे जात. एह आपा-धापी का जमाना में घर-मकान के जगहा गेटेड कम्युनिटी के अपार्टमेंट आ गइली सँ. एहिजा बहुते लोग के ठीक से ना मालूम होखे कि बगल वाला फ्लैट में के रहत बा, ऊ कहवाँ के ह, भा ऊ का करेलें. सभे अपने में मगन बा. भा कहीं त सभे अपने समस्यन से दू चार होखे में अझुराइल बा. बइठका अब बेकार के कमरा लागे लागल बा – काहें कि केहू केहू किहाँ आवते-जात नइखे. ऊफर पड़ो एह व्हाट्सअप के जवन परबो-तेवहार पर, जनम दिन, शादी-बियाहो का मौका पर लोग व्हाट्सअपे कर के काम चला लेत बा. शादी-बिआह के नेवता ओही पर आ जात बा, आ आदमी ओही पर बधाई देके इतिश्री कर लेत बा. नेवता देबे जाहूं के जरुरत नइखे, यूपीआई से भेज दीं.

बात फगुआ के गीतन से शुरु भइल बाकिर बहकि गइल. काहें कि हमरा कवनो अइसन होली गीत ना मिलल जवना के परिवार का संगे बइठ के सुनल जा सके. हालांकि गाँवन में गवात – ‘झुलवा झार के पहीर, झुलवा झार के पहीर, झुलवा का तरे गुलगुलवा’ लोग खुलेआम गाँव के होली टोली में गावत निकलल करे. ‘चुनरी में लागत बाटे हावा, बलम बेलबॉटम सिवा दऽ’ जइसन गीतो गवात रहल. बाकिर एहमें वइसन शब्द ना रहल करे जवन आजु का फगुआ गीतन में सरेआम गवात बा. यूट्यूब पर कवनो सेंसरो बोर्ड नइखे. जेकर मन में जवन आवत बा तवना के अपलोड कर देत बा. सुने वाला खोज के मरि जाई बाकिर ओकरा दोसरा तरह के गीत सुने के शायदे मिल पाई.

सोचे के बात बा कि एकरा ला केकरा के दोषी मानल जाव ? हमरा हिसाब से सबले बड़का दोषी गीतकार बाड़ें जे अइसन गीत लिखत बाड़ें. गवइईयन आ सुनवइयन के दोष कहल जा सकी बाकिर ऊ लोग करो त का ? समय काटे के बा, बोरियत मेटावे के बा, दिन भर के हारल-थाकल देह के थकान मेटावे के बा. जइसे पुरनका जमाना में जब बारात निकल जाव आ परिवार के सगरी मरद-बाल-बचाचा बराती चल जाँय तब घर के मेहरारू डोमकच क के रात बीता द सँ. कहे खातिर कहल जा सकेला कि ऊ लोग त जगरातो कर सकत रहुवे. बाकिर सुनलहीं होखब – राम के भजन में जम्हाई काहे आवेला, मन नइखे भजन में ई मुँहवा बतावेला !

खैर बात लमहर होखत गइल आ नेट पर आवे वाला लोगन का लगे समय ना होला लमहर-लमहर पोस्ट पढ़े के. त गइल त रहीं होली गीत खोजे ला बाकिर भेटा गइल एगो परिवार का साथे सुने जोग भोजपुरी गीत. गायक के नाम देख के पहिले त दुविधा में पड़ गइनी. पूरा सुन लिहला का बाद मान लिहनी के गुड्डू रंगीला त गायक हउवन. उनुका के जवने गीत दे दिहल जाव ओकरा के गा दिहें. एह गीत के पूरा सुनला का बाद रउरो मान लेब कि सबले बड़का दोषी होलें गीतकार ! एह गीत के गीतकार के अभिनन्दन करत बानी कि एगो बढ़िया गीत लिखले बाड़न. हँ फिल्मांंकन करे में तनिका बचकानापन बा. मार-पीट झगड़ा-टंटा देखवलो बिना एह गीत के परोसल जा सकत रहुवे. सबकुछ का बावजूद एह गीत के हम सौ में सत्तर नंबर देत बानी.

आ गाना देखावे-सुनावे से पहिले रउरा सभे से एगो निहोरा ! रउरो अगर अइसन कवनो गीत के लिंक भेज सकीं त हम आभारी होखब. दोसरे कम से कम एह पोस्ट के अपना फेसबुक, अपना व्हाट्सअप ग्रुप में जरुर शेयर करीं. जेहसे कि अधिका से अधिका लोग तक भोजपुरी में एह पहिलका आ बीसो बरीस से पुरान वेबसाइट के प!हुच बन सको. आ अगर थोड़-बहुत आर्थिक सहजोगो कर सकी त अउर बढ़िया. लिंक बगल में दीहल गइल बा.

चलीं अब गीतो सुन लीं –

एल्बम के नाम – ना केहू बाबू ना केहू भईया, गायक गुड्डू रंगीला, गीतकार प्रिन्स पवन, संगीतकार संजय आ निर्देशक शनि झा हउवन.

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं. यूपीआई पहचान हवे - भा सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.
अबहीं ले 12 गो भामाशाहन से कुल मिला के छह हजार आठ सौ सतासी रुपिया के सहयोग मिलल बा. सहजोग राशि आ तारीख का क्रम से पाँच गो सर्वश्रेष्ठ भामाशाह -
(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया

(3)

24 जून 2023 दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया
(4)
18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया
(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया

(11)
24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया

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एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.

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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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