– पाण्डेय हरिराम
आजु जन्माष्टमी ह आ एह मौका पर कृष्ण जन्म के चर्चा जरूरी बावे. काहे कि आजु हमनी का फेर एगो विचित्र संक्रमण काल का चौराहा पर खाड़ बानी जा. मौजूदा काल आधुनिक आ उत्तर आधुनिक काल से आगा बढ़ के एगो वैश्विक काल में प्रवेश कर रहल बा आ ई एगो संक्रमण काल बावे. तेज रफ्तार से बदलत वक्त में अक्सर परम्परा अउर मान्यता भुलाये लागेली सँ आ संस्कृतियन के टकराव शुरु हो जाले. अइसन बदलाव में हमेशा कृष्ण जइसन कवनो नायक के जरूरत होला.
महाभारत के कथा के अगर समाजविज्ञान वाला विश्लेषण कइल जाव त देखे के मिली कि महाभारत उत्तर भारत में गंगा- यमुना के कगार पर के इलाकन में भइल भारी राजनीतिक आ सामाजिक उथल-पुथल के दस्तावेज ह आ साहित्य में तनिका बढ़ा चढ़ा के ऊ काल आजुओ ले बाचल बा. बाकिर इहो तय बा कि वह एह महाद्वीप में ऊ एगो बड़हन संक्रमण के काल रहल. कृष्ण एह संक्रमण काल के अकेला नायक रहले. महाभारत के सगरी पात्र एगो बिलात सभ्यता के पात्र हउवे. एहसे ऊ चाहे जतना चमकत होखसु घटनाक्रम उनुका के लगातार तेजहीन बनावत जा ता. मानव सभ्यता कबीला आ गण से होत परिवार आ कुल के राज्य के रूप धरत नया सिरा से अपना के फेर से जमावे का मोड़ पर खाड़ बिया. अतना पारिवारिक कलह अउर बदलत नैतिकता से उपजत सामाजिक संघर्ष आ ऊहसे पैदा मानवीय पीड़ा सभ्यता के कवनो संक्रमणे काल में हो सकेले. कृष्ण का लगे एह सभके एगो व्याख्यो बा आ संक्रमण युग के लायक काम के एगो दर्शनो. पाण्डवन से कृष्ण के सरोकार कवनो मोह का चलते ना हो के युगधर्म का चलते रहल.
एही संदर्भ में इहो साफ होखत बा कि गीता के संदेश ना त आध्यात्मिक पाठ ह ना खाली कोरा कर्म के ज्ञान. बलुक दुखी अर्जुन का माध्यम से एगो नया समाज अउर नयकी व्यवस्था बनावे के संदेश हवे. मानवता के समूचा संकट काल के कृष्ण अपना भीतर एह तरह गाँठ लिहले रहले कि गांधारी ओह लड़ाई का बाद कृष्ण के शाप देत कहले रहली कि, “तू चहीतऽ त लड़ाई रुक सकत रहे !” अब अपना बेटन के गँवावे से दुखी गांधारी ई भुला जात बाड़ी कि लड़ाईये रोके के आखिरी कोशिश खातिर कृष्ण खुदे दूत बनके कौरवसभा में गइल रहले. गांधारी कृष्ण के ओह लड़ाई के कारण मान लिहली जबकि मनुष्य कारण बनिये ना सके. कारण त इतिहास रहल जे करवट बदलत रहे ! कृष्ण त बस ओह महाबदलाव के देखवईया रहलन. एहसे बदलाव के अगुवाई करे वाला हर नेता के, चाहे ऊ केहू होखे, कहीं ना कहीं कृष्ण के जरूरत पड़बे करेला. कृष्ण के पूरा कहानी में अतना मानवीय तत्व अउर अतना अनुभव बावे कि एह कथा के समुझला के जरूरत बा.
आजु हमनी के समाज जवना मोड़ पर खाड़ बा ओहिजो बदलाव के आहट सुनाई देत बा आ अइसनका में कृष्ण अउरीओ प्रासंगिक हो जात बाड़न. आजु फेर नया व्यवस्था बनावे के मांग हो रहल बा आ व्यवस्था बिया कि ओहिजे कायम रहे के जिद ठनले बिया. एहिजा ईहो समुझल जरूरी बा कि समय हमेशा हालात से जुड़ल होला आ आजु हालात के सगरी संदर्भे बदल गइल बा. आजु सगरी मानवीय सम्बंध, परिवार के स्वरूप, सत्ता आ सम्पत्ति के ढांचा, मरद मेहरारू के संबंध आ सामाजिक संस्था सगरी बदलत बाड़ी सँ. एही संक्रमण में जीवन के ओकरा पूरापन में आँकल जरूरी हो गइल बा जइसन तब कृष्ण कइले रहले. तबहिये पुरनका भिती ढहवले बिना नया भिती उठावल जा सकेला, नया समाज उपजावल जा सकेला. ना त ढहल रोकल संभव ना हो पाई. एह ढहल के रोके खातिर हमनी के कृष्ण के जीवन से सीखे के पड़ी.
पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखल करेनी.
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