हमनी का अकसरहा एगो माँग सुनीले कि भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल कइल जाव. बाकिर केहू ना कहे कि ओहसे पहिले एकरा के हिंदी के चंगुल से आजाद कइल जाव. एगो सुनियोजित षडयंत्र का तहत भोजपुरी के स्वतंत्र अस्तित्व गँवे गँवे मेटावल जा रहल बा. जनगणना मे भोजपुरी भाषा के अलगा से गिनिती तक ना होखे, ओकरा के हिंदी का उपभाषा का रुप में शामिल कर लिहल जाला. जनगणना के आँकड़ा एह बाति के देखावत बा. सूची में सैकड़न भाषा के नाम आ ओकरा के बोलेवालन के संख्या दिहल बा बाकिर भोजपुरी के नाम नदारद बा काहे कि ओकरा के हिंदी के उपभाषा बना के हिंदी में गिन लिहल गइल बा.
सरकारे के जनगणना २००१ के आँकड़ा लिहल जाव त भारत में भोजपुरी बोले वालन के संख्या तीन करोड़ तीस लाख निनानबे हजार चार सौ सत्तानबे बा. ई संख्या ओकरा के भारत के भाषा सूची में आठवाँ जगह पर राखत बा जवन कि बाकी पन्द्रह गो अनुसूचित भाषा से बेसी बा. भोजपुरिये का तरह राजस्थानी, मगही, हरियाणवी वगैरह भाषा के हिंदी का उपभाषा में शामिल कर लिहल गइल बा जवना के हिंदी के विद्वानन के षडयंत्र मानल जा सकेला. हिंदी के सगरी उपभाषा के अलगो कर दिहल जाव तबो देश में हिंदी बोले वालन के संख्या सब ले बेसी रही एहसे समुझ में नइखे आवत कि बाकी भाषा का साथे ई अन्याय काहे कइल जा रहल बा.
हिंदी के हित खातिर भोजपुरी के बलिदान करे के बात हमरा समुझ में नइखे आवत. जब बाकी सगरी भाषा अलगा हो सकेली सँ त भोजपुरीए कवनो किरिया खइले बिया का कि ऊ हिन्दी के महारानी बनावे खातिर अपने ओकर दाई बन के रह जाई ? आजु सबले बड़ जरुरत बा कि भोजपुरी के सबले पहिले हिंदी का गुलामी से निकालल जाव. जबले भोजपुरी के अलग ना मानी सरकार, तबले आठवीं अनुसूची में एकर शामिल होखे के सवाले नइखे उठत. ना त एकरा लगे कवनो प्रधानमंत्री के वइसन महिला मित्र बिया जवना के प्रभाव में ओकरा भाषा के आँठवी अनुसूची में शामिल कर लिहल गइल. हमरा से नाम मत बोलवाईं, सभे जानत बा कि कवन प्रधानमंत्री, कवन भाषा.
आजु जरुरत एह बाति के बा कि भोजपुरी के काम करे वाली सगरी संस्था आ नेता एह माँग के पहिले करसु कि भोजपुरी के गिनती हिंदी में मत मिलावल जाव. ओकरा बाद सवाल उठावल जाव कि कवना कमी का चलते भोजपुरी के, जवना के बोले वाला देशे में तीन करोड़ से बेसी लोग बा, त संविधान का आठवीं अनुसूची से बाहर राखल गइल बा बाकिर नेपाली, सिंधी, आ उर्दू के भीतर. कवनो त मापदण्ड होखी एकरा खातिर ? आ ऊ मापदण्ड हमनी भोजपुरियन के मालूम होखे के चाहीं. अगर हमनी का भाषा में कवनो कमी बा त हमनी का ओकरा के दूर करब जा.
भोजपुरी भाषियन के सबले बड़ कमजोरी बा एकता के अभाव. तीन कन्नौजिया तेरह चूल्हा का तरह हर भोजपुरिया के अलगे बथान होला. ऊ केहू दोसरा का साथे मिल के चल ना पावे, दोसरा के बढ़न्ती देख ना पावे. दोसरा के मामर हेठ करे का फेर में आपन मेमर हेठ होखत बर्दाश्त कर लेला. एकरो के दूर कइला के जरुरत बा. हमनी के चाहीं कि भोजपुरी में भा भोजपुरी के काम करे वाला हर आदमी, हर संस्था के बढ़ावा दिहल जाव. केंकड़ा का तरह एक दोसरा के टाँग खिंचाई बन्द कइल जाव. जबले हमनी भोजपुरियन में एह बात खातिर एका ना हो पाई तबले भोजपुरी के सरकारी मान्यता के सवाले नइखे उठत. काहे कि ना त ई कवनो संप्रदाय के भाषा ह, ना कवनो अइसन समूह के जवन आपन बाति मनवावे खातिर नाजायजो करे में ना हिचकिचाव.
संपादक, अँजोरिया
Sampadak jee.
Bahut badhiya bat kahaniha ja.
Lekin hindi kawano bhasha na hia e ta angrejee gulami ke bad bahut logan k pahchan k gulamee karawe bali ego hatlanda hia
asha ba bhratvarsh ke rajnitigya log k appan dimag me jaldi gham lagi
nepal ke dharti se bas atnahi
संपादकीय के अंतिम पैराग्राफ में रउँवा “अपना चिंता बनाम भोजपुरी के अस्तित्व पर प्रश्न चिह्न” के कारन भी बता देले बानी.ऊहे असली कारन बा.बाइ द वे हम कहल चाहबि कि “हिंदी के बिहारी उपभाषा में भोजपुरी के गिनती” भइला का कारन भोजपुरी के संविधान के आठवीं अनुसूची में शामिल नइखे कइल गइल -ई कारन गले नइखे उतरत.हिंदी के बिहारी उपभाषा में भोजपुरी का सङही मगही आ मैथिली के भी नाँव बा, जबकि मैथिली के बहुत पहिलहीं आठवीं अनुसूची में शामिल कऽ लिहल गइल बा.जहाँ तक कारन का मूल में जाए के बात बा त सूचना का अधिकार का तहत ई जानकारी माङल जा सकतिया.अग्रणी संस्था एह दिशाईं प्रयत्न करिहें सन त सफलता जरूर मिली.शुभकामना का साथ
राउर
विमल
एह मंजिल के पावे खातिर सभे भोजपुरी बोलेवाला लोगन के एकजुट कइल बहुत जरुरी बा. भोजपुरी बोलेवाला लोग हीं नइखे चाहत कि भोजपुरी के कवनो आपन स्थान मिलो .
धन्यवाद !
ओ.पी.अमृतांशु
बात इ बा कि भोजपुरिया लोगन मे एकता त सायदे कबो आई ,अरे जब लोग भोजपुरिया राज्य पूर्वाँचल बनवला खातिर एकजुद ना हो सकेले त भोजपुरी खातिर काहेँ होईहे, जब बात भोजपुरी के होला त सभे बयानबाजी शुरु कर देला । इ भोजपुरिया नेता लोग जब भोजपुरी के मसला ठिक ढंग से नइखे उठावत त बोट काहे देत बानी जा ।
NO VOTE FOR WITHOUT BHOJPURI.
ई बात एकदम सही बा कि भोजपुरी के साथे हमेशा से अन्याय होत आइल बा।लेकिन एकर जिम्मेवार हमनिए के बानी स। देश के आजादी के बाद 63 साल बीतलो पर भोजपुरी के सही जगह नइखे मिलल। भोजपुरी के नाम पर त संगठन कवनो कमी नइखे बाकिर ई लोग मिल के कुछ करे तबहीं कुछ हो सकेला। हमनी किहां के नेता, सांसद आ विधायक लोग भी पता ना कहां से अइसन कुपातर पैदा भइल लोग कि आज ले एगो काम ना कर सकल लोग। राजेन्द्र प्रसाद के प्रति हमरो आदर बा बाकिर ई ना बुझाय कि पहिलका राष्ट्रपति भइलो पर आ भोजपुरी बोलेवाल्ल होखलो पर उनकरा ई काहे ना बुझाइल कि भोजपुरी बोलेवाला के संख्या आ साहित्य कवनो नजर अंदाज करे लाएक ना रहे।