बांसगांव की मुनमुन – 10 वीं कड़ी

by | Feb 17, 2024 | 0 comments

( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )

धारावाहिक कड़ी के दसवां परोस

( पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.)

(पिछलका कड़ी का आखिर में मुनमुन के त ई लागल कि ओकर जिनिगी रुटीन पर आ गइल बाकिर का साचहूं ? अब आगे पढ़ीं…)

एने राहुल विवेक-मुनमुन कथा अपना तीनो बड़ भाईयन – रमेश, धीरज, अउर तरुण – के फ़ोन से परोस दिहले रहल. तीनो बौखलइलें. बाकिर घर के फ़ोन कटल होखला का चलते भड़ास ना निकाल पवलें. पड़ोस में केहू राहुल का तरह फ़ोन कइलसि ना. तय भइल कि केहू बांसगांव जा के मामिला रफ़ा-दफ़ा करे. रमेश आ धीरज के लागल कि जजी अउर अफ़सरी का रुतबा में बांसगांव जा के केहू से तू-तू, मैं-मैं कइल ठीक ना रही. प्रोटोकाल टूटी तवन अलगा, बदनामी होखि तवन ऊपर से. आखिरकार तय भइल कि तरुण जासु आ समुझा-बुझा के मामिला शांत करा देसु. तरुण गइबो कइलन. बाकिर केहू से अझूरइल ना. मुनमुने के जतना डांट-डपट सकत रहलन डंटले-डपटले. बाबू जी का तरह उहो आदेश सुनवलें कि – ‘घर से बाहर निकलल बंद करऽ, ना त टांगे तूड़ देब.’ साथ ही इहो कहलन कि, ‘शिक्षा मित्र के नौकरी से तोर दिमाग ख़राब हो गइल बा. एकरो के छोड़. कवनो जरूरत नइखे एह नौकरी करे के. इहे हमनी सभ के फ़ैसला बा.’

‘बाकिर बाबू हमनिओ के ख़रचा-वरचा पर कबो सोचेलऽ तू लोग ?’ अम्मा पूछली.

‘त रउरे लोग एकरा के पुलका रखले बानी. माथ पर चढ़ा लिहले बानी.’ तरुण भड़कल, ‘एकर तनखाहे कतना बा ? आ का एह तनखाहे से आजु ले घर चलल बा ?’

‘पहिले त ना बाकिर अब त थोड़-बहुत मदद करते बिया.’ अम्मा शांते स्वर में कहली.

तरुण चुपा गइल. साँझ बेरा बाबू जी से एह बाबत बाति कइलसि. बाकिर बाबूओ जी हूं-हां का अलावा कुछ बोलबे ना कइलन. तरुण बांसगांव से वापस लवटि आइल. लवटि के दुनु भाईयन के पूरा रिपोर्ट दिहलसि. दुनु भाइयो हूं-हां करिए के अपना कर्त्तव्यन के इतिश्री कर लिहलें. राहुलो तरुण के फ़ोन क के सारा हाल चाल लिहलसि. राहुल के फोन कर के तरुण साफ़ बता दिहलसि कि, ‘मुनमुन जवने कर रहल बिया भा बिगड़ रहल बिया, ओकरा पाछा बाबू जी अउर अम्मा के शहे बा. उहे लोग ओकरा के अतना माथा चढ़ा के रखले बाड़न आ एहू ले बेसी ओकर दिमाग शिक्षा मित्र के नौकरी से ख़राब हो गइल बा. अतने ना, अम्मा के त कहना बा कि मुनमुनवे घर के ख़रचा चला रहल बिया.’

‘ई त हद हो गइल !’ राहुल कहलसि आ फ़ोन राख दिहलसि. एह पूरा मसला पर ऊ थाईलैंड में विनीता से राय विचार कइलसि आ तय भइल कि रीता के निहोरा कर के बांसगांव भेजल जाय. उहे जा के मुनमुन के समुझावे. राहुल रीता के फ़ोन प सगरी समस्या बतवलसि आ कहलसि कि, ‘तुंही जा के समुझवतू मुनमुन के त शायद ऊ मान जाइत.’ रीता एह पर आपने पारिवारिक समस्या आ प्राथमिकता गिनावे लगलसि आ कहलसि ‘हमाार गइल त अबहीं मुश्किल बा.” फेर तनिका रुक के कहलसि कि, ‘भाभिए लोग के काहे नइखे भेज देत लोग ?’

‘रीता तुहूं !’ राहुल बोल;, ‘भइया लोगन का लगे समय नइखे बहिन ला आ तू भउजाइयन के बात करत बाड़ू. अरे भउजी लोग के त ई सब सुनला का बाद ख़ुद ही बात संभारे चाहत रहुवे. बाकिर केहू सांस तक ना लीहल. हम अतना दूर बानी एहिसे तोहरा पर ई ज़िम्मेदारी डालत बानी. ‘

‘चलऽ अबहीं त ना बाकिर जल्दिए जाएब बांसगांव. ‘ रीता बोललसि.

‘ठीक बा. ‘ राहुल आश्वस्त हो गइल.

कुछ दिन बाद रीता बांसगांव आल. अम्मा, बाबू जी के दशा देखि के ऊ विचलित हो गइल. माी त सूख के कांट हो चुकल रहुवे. बुझाव कि जइसे हैंगर पर टांग दीहल गइल होखे. मुनमुनवो बेमार रहुवे. डाक्टरन के कहना रहल कि ओकरा टी.बी. हो गइल बा. अब अइसना में ऊ मुनमुन के का त कइसे आ का समुझाइत ? आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास वाला गति हो गइल ओकर. बाकिर तबहियों मौका देखि के ऊ अम्मा, बाबू जी, आ मुनमुन तीनों के उपस्थिति में मुनमुन-विवेक कथा के ज़िक्र कइलसि. आ मुनमुन के समुझवलसि कि, ‘परिवार के इज़्ज़त अब तिहरा हाथे बा. एकरा पर बट्टा जनि लगावऽ. ‘

‘हम त समुझले रहीं कि तूं हमहन के हालचाल लेबे आइल बाड़ू रीता दीदी. ‘ मुनमुन बोलल, ‘बाकिर अब पता चलल कि तूं त दूत बन के आइल बाड़ू. ‘

‘ना, ना मुनमुन, अइसन कवनो बाति नइखे. ‘

‘अरे दूत बनहीं के बा त विभीषण जइसन राम के बनऽ, विदुर अउर कृष्ण का तरह पांडवन के बनऽ. ‘ मुनमुन बोललसि, ‘दूते बने के बा त ओह भाईयन का लगे जा जे जज अउर अफ़सर बन के बइठल बाड़ें. ओह लोग के घर के विपन्नता, दरिद्रता अउर मुश्किलात का बारे में बतावऽ. बतावऽ कि ओह लोग के बूढ़ माई-बाप आ छोटकी बहीन बेमारी, भूख आ मुश्किलात का बीच कइसे तिल-तिल क के रोज़-रोज़ जीयत मरत बा लोग. बतावऽ कि ओह लोग के के फूल जइसन छोट बहीन माई-बाप का साथ ही बूढ़ात बिया. ‘

रीता का लगे मुनमुन के एह सवालन के कवनो जवाब ना रहल. बाकिर मुनमुन धनकत रहुवे, ‘पूरा बांसेगांव का, सगरी जवार के लागेला कि ई घर जज आ अफसरन के घर ह. समृद्धि जइसे एहिजा सलमा-सितारा टांकत बिया. बाकिर ई सभ ऊपरी आ दिखावा के, घर का बहरी दरवाज़ा आ दुआर के बात हउवे. घर का भीतर आंगन अउर दालान के बात ना हउवे. आंगन, दालान अउर कोठरी में बूढ़ माई-बाप सिसकत बाड़ें.केहू से कुछ कहसु ना. ब्लड प्रेशर, शुगर अउर दमा के बेमारी बा बाबू जी के. बिना दवाईयनो के कबो-कबो कइसे ऊ आपन दिन गुजारेलें जानेलऊ ? माई के कपड़ा लत्ता देखत बाड़ू ?’ ऊ बोलत-बोलत बाबू जी के कचहरी वाला करिया कोट खूंटी पर से उतार के ले आइल आ देखावत कहलसि, ‘इहे फटलके आ गंदा हो चुकल कोट पहिर के जब बाबू जी इजलास में मुंसिफ़ मजिस्ट्रेट से कवनो बात पर बहुते नाज़ से कहेलें कि, हुज़ूर हमार बेटो न्यायाधीश हउवे त लोग हँस पड़ेला. बाकिर का ओह न्यायाधीश के एकरो चिंता बा कि ओकर बाप फाटल कोट पहिर के कचहरी जात बा.’ मुनमुन बोलत गइल, ‘एस.डी.एम. मिलेला त बाबू जी बहुते ताव से बतावेलें कि हमरो बेटा ए.डी.एम. हउवे त ऊ सुन के चिहुँकेला आ फेर इनकर हुलिया देखि के मुसुका के चल देला. बैंक में जालें त बतावेलें कि हमरो बेटा बैंक मैनेजर हउवे. लोग काम त कर देला बाकिर एगो फीका मुससकुराहटो छोड़ देला. लोगन से बतावत फिरेलें कि हमार एक बेटा थाईलैंडो में रहेला. एन.आर.आई हउवे. बाकिर उहे लोग जब देखेला कि उनुकरे एगो बेटी शिक्षा मित्र हियऽ त लोग घर के हक़ीक़तो के अंदाज़ा लगा लेबेलें. ‘ ऊ बोलत रहुवे, ‘ रीता दीदी अब जब दूत बन के आइले बाड़ू त जा के भइयो लोग के इहो सभ बतइहऽ. आ जे हमरा बात के यकीन ना होखे त बांसगांव त तोहरो जानल-पहिचानल हवे. दू चार गो गलियन, घरन में जा आ देखऽ कि लोग के व्यंग्य भरल नजर तोहरा के देखत-मुसुकात ना मिले त आ के हमरो के बतावऽ. ‘

रीता मुनमुन के अँकवारी बान्हि लिहलसि आ फफक पड़ल. सभका के समुझा बुझा के रीता दू दिन बाद बांसगांव से लवट गइल. फेर जब राहुल के फ़ोन आइल त रीता घर के विपन्नता आ समस्यन के पिटारा खोल दिहलसि. आ साफ बता दिहलसि कि, ‘दोष भइया तोहरे लोगन के बा. जेकर माई-बाप के चार-चार गो सफल, संपन्न अउर जमल बेटा होखऽ सँ जवनन के अफ़सरी आ जजी के क़िस्सा पूरा जवार जानत होखे ऊ अइसन हालात में जीयत बा लोग त तोहरा लोगन के जियला के धिक्कार बा. ‘

‘अरे हम पूछत बानी कि मुनमुन के कुछ समुझवलू कि ना? ‘ रीता के सगरी बातन के अनसुना करत राहुल बोललसि.

‘समुझवनी के मुनमुनो के. ‘ रीता बोलल, ‘पता बा तोहरा कि मुनमुनवो के टी.बी. हो गइल बा. बाबू जी के दवाईयन के खरचा जवन पहिलहीं से बावे, ऊ त अबहियों बावे. ‘

‘पहिले ई बतावऽ कि मुनमुन मनलसि कि ना ?’ राहुल अपने लकीर धइले रहल.

‘हम अम्मा बाबू जी आ मुनमुन के हालात बतावत बानी आ तूं आपने रिकार्ड बजवले जात बाड़ऽ. ‘ रीता बोलल, ‘तूं चारो भाई मिल के अम्मा बाबू जी के ख़रचा के जिम्मा ल लोग. आ हो सके त मुनमुन के बिआहो तय करा द लोग. जबले शादी तय नइखे होखत तबले मुनमुन के बांसगांव से कवनो भइये ओकरा के अपना लगे बिला लेसु, आ ओकरा टी.बी, के इलाज करा देसु. हमरा राय में सगरी समस्यन के इहे इलाज बा. अइसहीं मुनमुनो के सुधारल जा सकी . अरे नीमन त ई होखीत कि अब अम्मो-बाबू जी के केहू अपने लगे राखीत. उहो लोग अब अकेले रहे जोग नइखन रह गइल. ‘

‘त भइया लोगन के इहे बात समुझाव !’ राहुल बोलल, ‘हम त अतना दूर बानी कि का बताईं ?’

‘देखऽ तूं पुछलऽ त बता दिहनी. भइयो लोग पूछी त ओहू लोग के बता देब. बाकिर अपने से बतावे ना जाएब.’ रीता साफ़-साफ़ बता दिहलसि. फेर राहुल भइया लोगन से एह पूरा मामिला पर डिसकस कइलसि. बाकिर सभे बस खयाली पुलाव पकावत मिलल. आ मुनमुन के भा अम्मो-बाबू जी के केहू अपना किहां ले जाए ला तइयार ना लउकल. सभका लगे आपन-आपन दिक्क़तन के गाथा रहल. राहुल हार गइल.

ओकरा बुझाते ना रहल कि का करे ऊ ? बीबी से बतियावे त ऊ कहे, ‘तूं पगला गइल बाड़ऽ. ‘ सुन के ऊ खौल जाव. बीबि कहल करे कि, ‘तोहार भइया लोग ओहिजे बा. ऊ लोग कुछ करत नइखे त तूंही काहें जान दिहले बाड़ ? बेमतलब आपन ख़ून जरावत बाड़ऽ आ फ़ोन पर पइसा बरबाद करत बाड़ऽ ‘

बाकिर राहुल बीबी के बात में ना आइल. विनीता दीदी का लगे गइल आ कहलसि कि, ‘रउरे भइया लोगन के समुझाईं. ‘

‘भइया लोग भाभियन का राय से चलेला. ऊ लो समुझबे ना करी. ‘ विनीता बोललसि, ‘बदनामी ज़्यादा पसरे ओकरा से पहिले बेहतर रही कि ओकर बिआह करा द लोग. ‘

‘बिआह ला त भइया लोगन से बतियाइए सकीलें रउरा ?’

‘हँ, पहिले तूं बतियाव फेर हमहूं बतियाएब. ‘

मुनमुन के शादी करावे का बात पर सभे सहमत लउकल. बाकिर दुविधा फेर खड़ा भइल कि तय के करे आ फेर ख़रचो-वरचा आड़े आ जाव. आखिरकार तय भइल लो चारों भाई चन्दा करसु, एहुमें रमेश हाथ बटोर लिहलसि ई कहि के हम बेटा के इंजीनियरिंग करवावे जात बानी. ओकरा एडमिशन वग़ैरहे में ऊ परेशान बा. धीरज कहलसि कि दू लाख रुपिया ऊ दे दी. तरुणो कहलसि कि दू लाख रुपिया उहो दे दी. बाकी खरचा के बात उठल त राहुल कहलसि, ‘जवने लागी हम दे देब. बाकिर रउरा लोग ओहिजा बानीं. पहिले बिआह त तय करवाईं. ‘ बाकिर केहू खुल के तइयार ना भइल. थाक-हार के राहुल बाबूए जी से कहलसि कि, ‘रउरा बिआह तय करवाईं, बाकी जिम्मा हमार रही. ‘

मुनक्का राय बेटी मुनमुन के शादी जोग रिश्ता खोजे लगलन. बाकिर जेही उनुका के शादी के रिश्ता खोजे ला एने-ओने जात देखे से कहे लागे कि, ‘राउर चार-चार गो बेटा आ सगरी अइसन निकहा ओहदा पर बाड़ें बाकिर एह उमिर में रउरा काहे अतना दौड़-धूप करत बानी वकील साहब ?’ उहो एगो थाकल हँसी परोसत कह देसु कि, ‘बेटन का लगे टाइम कहाँ बा ? सगरी व्यस्त बाड़ें अपना-अपना काम में.’ एने मुनक्का राय शादी खोजत रहलें आ ओने गिरधारिओ राय सक्रिय हो गइल रहलन. उनुका लागल कि इहे अइसन मौका बा मुनक्का के शेखी के हवा निकाले के. मुनमुन-विवेक कथा के सुगबुगाहट उनुको लगे ले चहुँप चुकल रहुवे. से मुनक्का राय लईका देख के निकलसि तले ले गिरधारी राय कवनो ना कवनो दूत से चोखा-चटनी लगावत मुनमुन-विवेक कथा ओहिजो परोसवा देसु. ऊपर से ई सुनते कि लइकी के भाई जज, अफसर हउवें लोग आपन मुँह दहेज खातिर ढाका भर फइला देसु. ओह पर से मुनमुन-विवेक कथा मिले त बनतो बात बिगड़ जाव. मुनक्का राय परेशान हो गइलन, भा कहीं त तार-तार हो गइलन.

बुढ़ौती में जनमल ई बेटी उनुका के सुखो देत रहुवे आ दुखो. ऊ हलकान रहलेंं बेटन के असहयोग से, बेमारी आ आर्थिक लाचारी से. एक बेर राहुल के फोन आइल त ऊ शादी के बाबत रिपोर्ट चहलसि. ‘रिपोर्ट’ सुनते ऊ भड़क गइलन. कहलन, ‘ई कवनो प्रशासनिक भा अदालती कार्रवाई ना हवे जे एकर रिपोर्ट पेश करीं तोहरा लगे ?’ कहलन, ‘शादी बिआह के मामिल हवे. परचून के सामान त खरीदे के नइखे कि दुकान पर गइनी आ तउलवा के ले अइनी. बूढ़ आदमी हईं. पइसा-कौड़ी बावे ना. केहू संगे-साथे बावे ना. केहू के कतहीं लेइओ जाईं त किराया भाड़ा लागेला. अपने आइल-गइल दूभर बा. बेमारी बा, हाड़ बुढ़ाए लागल बा आ तूंं बाड़ऽ कि रिपोर्ट पूछत बाड़ऽ ?’

बाबूजी अबहीं राउर मूड ठीक नइखे. बाद में बतियावत बानी.’ कह के राहुल फोन काट दिहलसि. बाबू जी के कठिनाइओ ऊ बूझलसि आ हवाला का जरिए पचीस हजार रुपिया दुसरके दिने बाबू जी का लगे भेजवा दिहलसि. साथ ही मामा, मौसा, फूफा जइसन कुछ रिश्तेदारन के फोन करि के निहोरो कइलसि कि, ‘मुमनुन के शादी ठीक करावे में बाबूजी के सपोर्ट करीं.’ सभे मानियो गइल.

( बाकिर का शादी-बिआह के मसला अतना आराम से सलटि जाला. आ गिरधारी राय अबहीं कवन-कवन अड़चन बनइहें ई केकरा मालूम बा ? आवत रहीं सभे. देखत रहीं. जल्दिए अगिलको कड़ी परोसे के मौका मिल जाई.)

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 11 गो भामाशाहन से कुल मिला के छह हजार सात सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


संस्तुति

हेल्थ इन्श्योरेंस करे वाला संस्था बहुते बाड़ी सँ बाकिर स्टार हेल्थ एह मामिला में लाजवाब बा, ई हम अपना निजी अनुभव से बतावतानी. अधिका जानकारी ला स्टार हेल्थ से संपर्क करीं.
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