सोमारी के फेर (बतकुच्चन 164)

by | Jul 31, 2014 | 0 comments

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ओह दिन सावन के पहिला सोमारी रहल. किरन फूटे से पहिलहीं श्रद्धालुअन के झुंड के झुंड शिवजी के अर्घ्य दे के लवटत रहल. सबे खुश रहे कि भीड़ उमड़े से पहिलहीं जल चढ़ा लिहनी ना त बाद में भीड़ में कचराए के पड़ित. बाकिर हम सोचे लगनी कि विकास का राह प बढ़त हमनी का अपना संस्कृति आ संस्कारन से कतना कटत गइल बानी. आगा निकले का एह आपाधापी में पता ना कब भुला गइल तिथि आ दिनांक के फेर, तारीख आ दिन के अंतर. उपर झापर देखीं त लागी कि तारीख, तिथि, आ दिनांक तीनो एके बात ह. बाकिर तारीख आ दिनांक एक होखे त होखे तिथि आ दिनांक ना त एक रहे आ ना हो सकेला. दिनांक माने होला दिन के अंक. जइसे कि आजु के दिनांक ह जुलाई महीना के बीसवाँ दिन. बाकिर दिन त आजु अतवार ह. ई अतवार कब शुरू भइल कबो सोचनी. कहब सभे कि रात बारह बजे से दिन बदल जाला. बाकिर ई गलत बात ह. रात बारह बजे से तारीख भा दिनांक भले बदल जाव दिन त तब बदली जब सूर्योदय के समय हो जाई. हमनी के संस्कृति में सूर्योदय के समय होरा के स्वामी का नाम पर दिन के नाम तय होला. बाकिर अंगरेजियत के प्रभाव में हमनी का दोसरा संस्कृति के अपना लिहनी. ओहमे रात बारह बजे से तारीखो बदलेला आ दिनो. अब आम दिनचर्या में रउरा दिन के शुरूआत कबो से मान लीं बाकिर खास मौका पर त रउरा अपना संस्कृति के आधार मानही के पड़ी.

हर नहाए वाला दिन नहान ना होखे आ हर सोमार के सोमारी ना कहल जाव. साल में बावन तिरपन गो सोमार आवेला बाकिर सो़ेमारी सावन महीना के सोमारे के कहल जाला. हर सोमार के सोमारी ना कहल जाव. परंपरा ह सावन के सोमार का दिने शिवजी पर चल चढ़ावे के. वइसे शिवजी प जल हर दिन चढावल जाला बाकिर सावन के सोमार के महत्व मानल जाला. मैथिल क्षेत्र में भादो का महीनो में काँवर ढोए के परंपरा ह से अलग बात बा. हम अपना के भोजपुरिया इलाका के परंपरा ले सीमित राखत बानी. हँ त सोमार जब सोमार का सूर्योदय का बाद से शुरू होला त सूर्योदय से पहिले के अरघ त अतवारे का दिने दिया गइल. सोच के देखीं कि कतना बड़ गलती होखत बा. अगर भीड़ से बचही के बा त सोमार का रात में जल चढ़ा सकीलें मंगल के सूर्योदय से पहिले ले. पता ना हमरा एह बाति से धर्मगुरू कहाँ ले सहमत होखीहें. पंडित जी लोग त बतावल समुझावल छोड़िए दिहले बा. जजमाने का खुशी मे खुश रहे के आदत डाल लिहले बा लोग.

अब जब दिन के शुरूआत के समय के चरचा क चुकनी त सोचत बानी कि कुछ चरचा समयो के कर लीं. कहल जाला कि मनुज बली नहीं होत है समय होत बलवान. समय अपना चाल से चलेला केहू दोसरा के इंतजार ना करे. आखिर समय अतना बलवान कइसे हो गइल. समय में सोचीं त दू गो शब्द बा स आ मय. स माने साथे समेत आ मय माने सब कुछ. जवना में सब कुछ समाहित हो जाव उहे समय होला. समय का मय में सब कुछ शामिल बा. अब आदमी अपना मन के समुझावे ला भलही कह लेव के समय समय के बात ह, कबो गाड़ी पर नाव त कबो नाव पर गाड़ी.

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 11 गो भामाशाहन से कुल मिला के छह हजार सात सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


संस्तुति

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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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