अंधेर नगरी, चौपट राजा

by | Jul 2, 2010 | 3 comments

– डा॰ सुभाष राय

ई त सभे जानेला कि
सूरुज उग्गी त सबेर होई
इहो मालूम बा सबके कि
चान राति क उगेला
बहुते नीक लागेला
फूल फुलाला त महकेला

बाकिर ई केहू के ना पता
कि महंगाई काहें बढ़ेले
खून-पसीना बहा के भी
किसान काहें सबकर मुंह
तकले के मजबूर बानऽ
काहे दूसरन क जान ले के
लुटेरन क फउज मस्त बा
सुघर-सुघर बचियन के
मइया काहें जनमते फेंकि आवेलीं
बगइचा में चुपचाप
काहें भुखल रहिं जालन स
लइका गरीब लोगन क
काहें मजूर बाप क बेटवा
मजूरे बने के शरापल बा

अदिमी के आंखि रहते काहें
सगरो जग हरियर लउकेला
काहें ई अंधेरनगरी भइल बा
काहें ई चौपट राजा गद्दी प
खूब ठाट से मुस्कियात बा
जहाजि उड़त बा, लाल बत्ती
दौरति बा चउतरफा दिन-रात
कवनो काम रुकत ना बा
तेल क दाम बढ़त बा
दाल-चाउर, रोटी घटति बा
उनक प्रवचन चलत बा
सब कुसल बा, नीक बा
जनता के कवनो दुख ना बा
रामराज अवले चाहत बा

केहू बा करेजा वाला
बीर-बांकुरा, जे रोके इनके
जे चढ़ावे इनके मुंह प जाबी
जे इनके मंच से घसीटि ले
जे इनके मुंह प
इनके झूठ जोर से दै मारे
हां, बा का केहू…?


डा. सुभाष राय के दूसर कविता


ए-१५८, एम आई जी, शास्त्रीपुरम, बोदला रोड, आगरा
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3 Comments

  1. डा. सुभाष राय

    आशुतोश हमार छोट भाई नइखन बान. उनके हमार दुलार. प्रभाकर जी के बहुते आशीष. भैया, तू त एगो सुघर कविता लिख देहल. बहुत आभार. कबो फोन करिहा बबुआ.

  2. प्रभाकर पाण्डेय

    सादर नमस्कार….एकदम सामयिक अउर यथार्थ। सादर।।

    हम बस दु पंक्ति कहबि अपनी ओर से….

    आज जब हम सभ्य हो गए हैं,
    देखते नहीं,
    दूसरे की रोटी,
    छिनकर खा रहे हैं,
    और अपनों से कहते हैं,
    छिन लो,दूसरों की रोटी,
    न देने पर,
    नोच लो बोटी-बोटी,
    क्योंकि हम सभ्य हो गए हैं,
    पिल्ले हो गए हैं.
    बहुत पहले घर का मालिक,
    सबको खिलाकर,
    जो बचता रुखा-सूखा,
    उसी को खाता,
    भरपेत ठंडा पानी पीता,
    आज जब हमारी सभ्यता,
    आसमान छू रही है,
    घर का क्या ?
    देश का मालिक,
    हींकभर खाता,
    भंडार सजाता,
    चैन से सोता,
    बेंच देता,
    देशवासियों का काटकर पेट,
    क्योंकि हम सभ्य हो गए हैं.

  3. आशुतोष कुमार सिंह

    व्यवस्था में व्याप्त कुव्यवस्था प रउआ जबरदस्त प्रहार कइले बानी. अब ई देश खून खोज रहल बा. एगो अउर क्रांति…

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अँजोरिया के भामाशाह

अगर चाहत बानी कि अँजोरिया जीयत रहे आ मजबूती से खड़ा रह सके त कम से कम 11 रुपिया के सहयोग कर के एकरा के वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराईं.
यूपीआई पहचान हवे -
anjoria@uboi


सहयोग भेजला का बाद आपन एगो फोटो आ परिचय
anjoria@outlook.com
पर भेज दीं. सभकर नाम शामिल रही सूची में बाकिर सबले बड़का पाँच गो भामाशाहन के एहिजा पहिला पन्ना पर जगहा दीहल जाई.


अबहीं ले 11 गो भामाशाहन से कुल मिला के छह हजार सात सौ छियासी रुपिया के सहयोग मिलल बा.


(1)
अनुपलब्ध
18 जून 2023
गुमनाम भाई जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(3)


24 जून 2023
दयाशंकर तिवारी जी,
सहयोग राशि - एगारह सौ एक रुपिया

(4)

18 जुलाई 2023
फ्रेंड्स कम्प्यूटर, बलिया
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(7)
19 नवम्बर 2023
पाती प्रकाशन का ओर से, आकांक्षा द्विवेदी, मुम्बई
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


(11)

24 अप्रैल 2024
सौरभ पाण्डेय जी
सहयोग राशि - एगारह सौ रुपिया


पूरा सूची


एगो निहोरा बा कि जब सहयोग करीं त ओकर सूचना जरुर दे दीं. एही चलते तीन दिन बाद एकरा के जोड़नी ह जब खाता देखला पर पता चलल ह.


संस्तुति

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सुतला मे, जगला में, चेत में, अचेत में। बारी, फुलवारी में, चँवर, कुरखेत में। घूमे जाला कतहीं लवटि आवे सँझिया, चोरवा के मन बसे ककड़ी के खेत में। - संगीत सुभाष के ह्वाट्सअप से


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