– जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
बिला गइल माथा के
संतुलन बेगाथा के
बौंडियात बानी एनी ओनि
सुनाइल एघर से भागल बा ॥
बुझाता ए एनियों लुत्ती लागल बा ॥
भइल बंद हाथ कमाई के
पीर उठल जुदाई के
घिघियात बानी एनी ओनि
बुझाइल ए कुरसी बिना पागल बा ॥
बुझाता ए एनियों लुत्ती लागल बा ॥
दिन पलटल नक्सा मराई के
उकड़ूँ बईठ जेब भराई के
छछनत बानी एनी ओनि
बरगलाइल ए जनता जागल बा ॥
बुझाता ए एनियों लुत्ती लागल बा ॥
राह मे बाधा ठाढ़ कराई के
कूल्हि करतब जग हसाई के
बरबरातए बानी एनी ओनि
सुझाइल ए दोसर के भाग जागल बा ॥
बुझाता ए एनियों लुत्ती लागल बा ॥
सोहात नईखे विकास सवाई के
परतोख देहसु बाबू माई के
फउंकत बानी एनी ओनि
नियराइल आभाष होता टांगल बा ॥
बुझाता ए एनियों लुत्ती लागल बा ॥
मचल कउवा झमार
मचल कउवा झमार, आगे पीछे अन्हार ।
नीति कवनों विस्तार के चलावऽ इहें ।
बचवा धरती छोड़ दोसरा के, आवऽ इहें ॥
ई त पुरुखन के भूमि, नीमन कइने एका चूमी ।
रीति कवनों अभिसार के चलावऽ इहें ।
बचवा धरती छोड़ दोसरा के, आवऽ इहें ॥
छोड़ऽ घुमला के चाह, मने भरी के उछाह ।
प्रीति के रहिया बनावऽ इहें ।
बचवा धरती छोड़ दोसरा के, आवा इहें ॥
सोच नीमन करऽ आपन, कइके लोभ क उद्यापन ।
सभके विकास ला बयार के बहावऽ इहें ।
बचवा धरती छोड़ दोसरा के आवऽ इहें ॥
नाही कवनों रार इहवाँ, भरल बाटे प्यार इहवाँ
सूतल पौरुष के आई जगावऽ इहें ।
बचवा धरती छोड़ दोसरा के, आव इहें ॥