एगो वेबसाइट के नाम हवे – जस्ट इन जस्टिस. डॉटकॉम कि डॉटइन एकरा में पड़े के जरुरत नइखे. मतलब त बस जस्ट–इन–जस्टिस से बावे. त ओकरा के देखनी त मन में सवाल उठल कि कहीं जस्ट इनजस्टिस कहि के इनजस्टिस के जस्टिफाई त नइखे कइल गइल बाकिर फेर गहराई से जाने के कोशिश कइनी त देखनी कि जस्टिस में जस्ट के जरुरत के रेघरियावल गइल रहुवे. होखहूँ के चाहीं. अगर जस्टिस में जस्ट समाहित नइखे त ऊ जस्टिस ना कहा के प्रोनाउन्समेंट हो जाई.
हालही में अदालत से एगो फैसला आइल जवना में फर्जीवाड़ा करे के दोषी मिलला का बाद एकही परिवार के तीनजने के सात बरीस के जेल के सजा सुना दीहल गइल. एह फैसला पर प्रतिक्रिया देत असल अपराधी के कहना रहल कि ई इंसाफ ना हो के महज एगो फैसला भर माने के चाहीं. ऊ कहलन त ना बाकिर हम सोचे लगनी कि सचहूं एह में इंसाफ नइखे भइल का. कहीं उनुका कहला के मतलब त ई नइखे कि ओह फर्जीवाड़ा में त एके गो अपराधी रहुवे. बाकिर सजा तीन लोग के सुना दीहल गइल. भा ई कि महज तीने लोग के सजा काहे सुनावल गइल. सजा सुनावहीं के रहल त हर ओह आदमी के सजा सुनावे के चाहत रहुवे जे ओह फर्जीवाड़ा में कवनो ना कवनो तरह से शामिल रहुवे. जइसे कि अपना रसूख के इस्तेमाल करा के ऊ अधिकारियन से फर्जी कागजात तइयार करवलसि त ओह अधिकारियनो के त सजा सुनावल चाहत रहुवे. अगर ऊ अधिकारी उनुका रसूख का दबाव में ई गलत काम कइलें त उनुकर मेहरारू आ बेटो त उनुका कहला मुताबिक कइलें. त अधिकारियन के बखसि के परिवारे के काहे सजा सुनावल गइल. एकरा के फैसला त कहल जा सकेला, बाकिर कवनो नजरिया से ई इंसाफ ना कहाई.
अंगरेजी के जस्ट–इन–जस्टिस आ उर्दू के फैसला आ इंसाफ के चरचा का बीच निर्णय आ न्याय के कइसे छोड़ दीहल जाव ! निर्णय के पीछे अगर पर्याप्त आ उचित कारण बा तब त ऊ न्याय होखी ना त मनमर्जी, ह्विम, स्वेच्छाचारे कहाई. पर्याप्त और उचित लिखता इयाद पड़ल कि पुरनका जमाना में रेलगाड़ी का डिब्बा का भीतर एगो सीकड़ लगावल रहत रहुवे जवना के खींच के रेलगाड़ी के रोकल जा सकत रहुवे. ओह सीकड़ का नीचे इहो बतावल गइल रहत रहुवे कि उचित और पर्याप्त कारण के बिना सीकड़ खींचल अपराध मानल जाई आ ओकरा ला पाँच सौ रुपिया भा छह महीना के जेल हो सकेला. एकरा बावजूद ओह सीकड़ के अतना दुरुपयोग कइल गइल कि अब ओकरा के हटाइए दीहल गइल बा.
उचित आ पर्याप्त कारण का बिना सुनावल गइल कवनो निर्णय निर्णय त होखी बाकिर न्याय ना कहल जा सकी. एही तर्क का आधार पर इहो कहल जा सकेला कि उचित आ पर्याप्त कारण का बिना अदालत के कवनो फैसला के आलोचना कइल अपराध होला आ ओकरा ला अदालत ओह आदमी पर अवमानना के आरोप लगा के सजा दीहल जा सकेला. अलग बाति बा कि अवमानना के दोष सिद्ध भइला का बादो अदालत एगो रसूखदार वकील – अधिवक्ता, एडवोकेट, सॉलिसीटर, बैरिस्टर के फरक आम आदमी का समुझ का दायरा से बाहर बावे – के महज एक रुपिया के अर्थदण्ड लगा के अदालत पता ना का कहल चहलसि – अदालत के मान एक रुपिया के बरोबर बा आ कि ओह वकील के औकात एक कौड़ी से अधिका के नइखे एहसे ओकरा के ओकरा औकात से बेसी के जुर्माना ना लगावल जा सकत रहुवे.
आ आखिर में उहो दिन इयाद आवत बा जब केहू अदालत पर कुछ बोले–लिखे से पहिले हजार बेर सोचत रहुवे. आ एगो जमाना इहो आ गइल कि सोशल मीडिया पर आए दिन कोर्ट के कोठा कहल जात बा बाकिर कवनो कार्रवाई नइखे हो पावत. महामहिमो के एहू पर सोचला के जरुरत बा कि कहीं ऊ लोग जे बाप के राज मान लिहले बा एही चलते त आम आदमी ओकरा के हिकारत से देखे लागल बा.
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