– बिनोद सिंह गहरवार
हार पछता के काल्ह दिल्ली से पटना आ गइनी. आपन हारल आ दीदी के मारल केकरा से कहीं. आजु दू बरिस से एँड़ी चोटी एक क के सभे के हेरा में बान्हे के निष्फल प्रयास कइले रहीं. अइन मौका प अपना आदत क अनुसार दीदी बाँगड़ मार दिहली. हम जानत रहीं, बिपक्षी एकता मतलब बिना मेंह के दँउरी. अइसे त लोग पहिलही से खूँटा तुड़ात रहे बाकि असरा रहे कि लोग हमरा के पेठिया नाध दिही त हम चौबीस के दँउरी में उनका के लसार के पुअरा क देतीं. बाकिर खुदे गतान बन के पटना आ गइनी. पटना में पोस्टर के परपराइल, बैनर के बरबराइल आ होर्डिंग के हाल्ला कइला प एकदमे पानी फेरा गइल. आवते-आवते त पहिले एह सभन के नोच-नाच के गतलखाना में फेंकवइनी. एकरा बाद त्यागी जी से फोन प कहनी कि टीवी डिबेट में प्रधानमंत्री मैटेरियल के माला जापल जतना जल्दी होखे त्याग दीं. काहे से कि अब एह कुल में कवनो लस नइखे.आरे हमरा के पेठिया ना चले देब लोग, मत चले देव, ठीक बा, बाकि गवत-पानी त ठीक से दीहल चाहत रहे. खाली सिंघाड़ा आ चाह प छेंवक देलख लोग. इ त एकदम बर्दाश्त से बाहर हो गइल.
एने कुछ दिन से सबकुछ हमरा साथे उल्टे होखऽता. एह झटका से उबरल ना रहीं कि जरला प खोरे खातिर अजोधेया से नेवता आ गइल. जोगी बाबा बड़ा लमहर जग करावत बाड़न. देशे-देशी नेवता भेजले बाड़न. बुझ ल कि हमार हाल साँप-छछूंनर वाला हो गइल बा. कतना बढ़िया से टीका लगा के कबो चरनामिरित चीख लेत रहीं, त कबो चरखानवा गमछी ओढ़ के खजूर खा लेत रहीं. राम भक्तन प – ‘ राम लला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएँगे, पर तारीख नहीं बताएँगे,’ कह के गाभी मार-मार के धर्मनिरपेक्षता के महंतो बनल रही, सभ प पानी फेरा गइल. इ कोट-कचहरी जवन ना करावे. फैसला सुना के सब गुड़ गोबर क देलस. हमरा त बुझाता कि इहो अपना रस्ता से भटक गइल बा. ना त कतना बढ़िया तारीख प तारीख देत रहलें आ हमनी के धर्मनिरपेक्षता के दोकानो बमबम करत रहे. एकरे के समय के फेर कहाला.
एगो ऊ बा कि माटी छुअता त सोना हो जाता, आ एगो हम बानी सोना छुअतानी त माटी हो जाता! अच्छा इ कुल्ह भुला के त हम धूर झार के खड़ा हो जाइब बाकि हइ नेवतवा के का करीं! एकरा प जब-जब हमार नजर पड़ऽता, तब-तब हमरा छाती प साँप लोटे लागत बा. सोच-सोच के हम दुबराइल जात बानी कि हम जवन-जवन ना चहनी अस के उहे होके रहल. हम ना चहनी कि एनडीए उनुका के नेता माने, एनडीए उनुके के नेता मान लेलस, हम ना चहनी कि ऊ प्रधानमंत्री बनस, ऊ प्रधानमंत्री बन गइलन. अब ऊ पियरी पहिन के हमरा आँखी के सोझा प्राण प्रतिष्ठा के जजमान बनिहें, भला इ हम कइसे देखब! ए अँखिया, इ सभ देखे के पहिले ते फूट काहे नइखिस जात! हम कतनो चाहब बाकि काहे के ऊ होखे जाय … हँ इण्डिया में फूट जरूर हो जाई.
चलीं फिलहाल इ कुल्ह सोचला से कवनो फायदा नइखे. बुझाता कि रामभक्त गीतवा सांचे गावेलन स – ‘राम ना बिगड़िहें जेकर, केहु ना बिगाड़ी जी’ !
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