(समाचार पत्र संपादकन के नाम एगो खुला चिट्ठी)
हमरा अशे ना पूरा विश्वास बा कि ई चिट्ठी रउरा अखबार में ना छपी काहे कि ई रउरे विरोध में बा, तबहियो हम आपन समय खराब करत ई चिट्ठी लिखे के हिमाकत कर रहल बानी. आये दिन अखबारन में सेक्स ताकत के दवाई बेचे वालन के बाढ़ आ गइल बा. “लव केयर ” , ” जापानी तेल”, “स्टे आन”, “मुसली पॉवर” वगैरह अइसनका कई गो विज्ञापन बा जवनन के देख के लागेला कि मानो आजु के जीवन क़े जरुरते इहे रहि गइल बा. “जबरदस्त जोश जबरदस्त दम”, “रिश्तो क़ी मधुरता… पुरुषों क़ी ताकत के लिए खास लोकप्रिय व असरदायक”, “जोश मे भर दे”, “आपकी ताकत ….आपकी पहचान”, “जीने क़ी तम्मना फिर जग उठी”, “प्यार फिर उभर आया”, “रातें रंगीन होने लगी, दिन खुशियों से खिलने लगा” , “दिल जवानी सा धड़कने लगा”, “दामन खुशियों से भरने लगा”, “क्या मैं कंहू इसे, इश्क , प्यार , मोहब्बत या जन्नत ?” कुछ अइसने स्लोगन बाड़ी सँ जवना चलते बरबस एह विज्ञापनन क़ा ओर पाठकन के ध्यान खींचा जाला.
आजु ले केहू एह विज्ञापनन क़े सचाई जाने क़े कोशिश ना कइले होई, शायद विज्ञापन छापे वाला समाचारो पत्र ना. कवनो विज्ञापन का साथे कंपनी के पता ना होखे जवना से ओकर सचाई के पता लगावल जा सके. एह कम्पनियन के नामो एहसे पहिले केहू ना सुनले होखी. ई सगरी दवाईयन के कानूनी मान्यता बा कि ना ओकरो पता नइखे. सेक्स के कुछ भूखाइल लोग जरुर एह विज्ञापनन क़ा चकाचौंध में फँसत होखीहें बाकिर विज्ञापन का अनुसार दवा के फायदा ना मिलला पर केकरा सोझा ऊ आपन दुखड़ा रोइहें. झापड़ मारे आ रोवहू ना देव, कहावत लेखा ठगाइल आदमी समाज में बदनामी का डर से केहू के आगा आपन रोनो ना रो सके. रोवबो करे त ई कइसे सिद्ध करी कि ई दवाई असर नइखे करत ! काहे कि एकर उपयोग व्यक्तिगत तौर पर होला. हद त अब ई हो गइल बा कि अइसन विज्ञापन प्रतिष्ठित कहल जाये वाला अखबारन का पहिला पन्ना पर छपे लागल बाड़े. अइसने एगो विज्ञापन मुंबई के हिंदी में प्रथम कहाये वाला अख़बारो के पहिला पन्ना पर छपल रहे. देखे में ऊ कामसूत्र के कवनो आयाम से कम ना लागत रहे. हो सकेला कि संपादक जी के भा मेनैजमेंट के ध्यान ओहपर ना गइल होखो, हालाँकि हमरा विरोध पत्र लिखला पर ऊ कामुक फोटो छापना जरुर बंद कर दिहल गइल बाकिर बरगलावे वाला शब्द जाल का साथे ऊ विज्ञापन अबहियो छप रहल बा आ फोटो के तनि माइल्ड कर दिहल गइल बा. बाकिर एह पर ध्यान दिहल जरुरी बा आ अइसन विज्ञापन छापल बंद होखे के चाहीं.
पिछला दिने नवभारत टाइम्स हिंदी में दिनांक २८-१ -२०११ के पृष्ठ ११ पर डॉ॰ हरीश शेट्टी एगो सवाल का जवाब में बतावत कहले बाड़न कि बाज़ार में मिले वाली अइसनका दवाईयन से आम तौर पर सेक्स पॉवर ना बढ़े. एह सबका बावजूद एह दवाईयन के प्रचार करल कतना उचित बा”.
साथ ही सरकारो के चाहीं क़ि एह विज्ञापित दवाईयन के सत्यापन करावे आ एह दवाईयन का विज्ञापन का साथे सरकारी मान्यता छापे खातिर कंपनियन के बाध्य करे. ना त ई दवाई समाज के गलत राह पर ले जा सकेली सँ. लोगो के चाहीं कि बिना अपना चिक्त्सिक से सलाह लिहले अइसन विज्ञापित दवाईयन के उपयोग ना करे.”
— अशोक भाटिया , वसई
संपादक के टिप्पणी :
भाटिया जी, रउरा वेदना के समुझत आ सामाजिक जिम्मेदारी समुझत राउर चिट्ठी प्रकाशित हो रहल बा. बाकिर एक बात पर रउरा ध्यान नइखी दिहले. संपादक अब कवनो अखबार में सबले मजबूत प्राणी ना रहि के सबले बेचारा आ गैर जरुरत प्राणी हो गइल बा. शायदे कवनो अखबार के प्रबन्धन भा मालिक संपादक के विरोध के कवनो भाव दीहें. विज्ञापन वाला पइसा देले सँ आ पइसा खातिर अखबार में हर कुछ छप सकेला बशर्ते ओकरा से ओह अखबार के मालिक के कवनो निजी नुकसान ना होत होखे. एहि चलते अब पत्रकार लोग वेब के राह चले लागल बा काहे कि ऊहिजा ऊ लोग अपना विचार भा मनोभाव के बिना कवनो दखलन्दाजी के छाप सकेले. लोगो का बीच अखबारन के ऊ इज्जत नइखे रहि गइल. अखबार खरीदल आ बाँचल एगो आदत में शुमार बा बस एहिसे अखबार बिकात आ पढ़ात बाड़ी सँ. ना त पढ़ल लिखल आ क्षमतावान समाज में सूचना के स्रोत बहुतेरे हो गइल बा आ ऊ लोग सूचना के महत्व देबे लागल बा ओकरा स्रोत के ना.