– परमानंद पाण्डेय
महाराज दशरथ के जब संतान प्राप्त नाहीं होत रहल तब ऊ बहुत दुखी भइलें, पर अइसने समय में उनके एके बात क हौंसला मिलत रहे जवन कबो उनके निराश नाहीं होखे दीहलसि अउर उ रहल, श्रवण कुमार के पिता जी क दीहल श्राप…
महाराज दशरथ जी जब-जब दुखी होत रहलें तब-तब उनके श्रवण के पिता जी क दीहल श्राप याद आ जात रहल.
श्रवण कुमार के पिता जी ई श्राप दिहले रहलें कि ”जइसे हम पुत्र वियोग में तड़प-तड़प के मरत हईँ वइसहीं महराज दशरथ तुहू अपने पुत्र के वियोग में तड़प-तड़प के मरब !”
महाराज दशरथ के पता रहल की ई श्राप अवश्य फलीभूत होई अउर एकर अर्थ ह कि हमके एह जनम में पुत्र त अवश्य प्राप्त होई. पर हमहूं पुत्र के शोके में तड़प-तडप के मरब.
“एकर मतलब ई कि श्राप महाराज दशरथ खातिर संतान प्राप्ति क सौभाग्य लेके आइल.”
अइसने एगो घटना सुग्रीवो जी के साथे भइल… रामायण में प्रसङ्ग ह कि सुग्रीव जब माई सीता जी क खोजले में वानर वीर लोगन के पृथ्वी के अलग-अलग दिशा में भेजत रहलें, त उनके भेजले के साथे-साथे उनके इहो बतावत रहलें, कि कवने दिशा में तुहके जाए क ह, अउर कवने स्थान पर कवने देश में अउर कवने जगह तुहके जाए के चाहीं भा नाहीं जाए क चाहीं.
प्रभु श्रीराम सुग्रीव क ई भौगौलिक ज्ञान देख के हतप्रभ रहलें.
ऊ सुग्रीव से पूछलें कि, सुग्रीव तुहके ई सब कइसे पता ?
त सुग्रीव उनसे कहलें कि ”हम बाली का भय से जब मारत-मारत फिरत रहलीं त पूरे पृथ्वी पर कतहीं शरण नाही मिलल… अउर एही चक्कर में हम पूरा पृथ्वी छान मरलीं अउर एही दौरान हमके सजो भूगोल क ज्ञान हो गइल.”
अब अगर सुग्रीव पर ई संकट नाहीं आइल होत त उनके भूगोल क ज्ञान नाहीं भइल होत. तब वोह समय माई जानकी जी के खोजल केतना कठिन हो जात.
एही पर केहू बहुत सुनर कहले बा कि, अनुकूलता भोजन ह, अउर प्रतिकूलता विटामिन ह, अउर चुनौती वरदान ह, अउर जे एह अनुसार व्यवहार करे उहे पुरुषार्थी ह.
ईश्वर क अउर लोगन से मिले वाला हर एक पुष्प अगर वरदान ह त हर एक काँटो वरदाने समझे क चाहीं.
मतलब कि आज मिलल सुख से आप खुश बानी त कबो अगर कवनो दुख, विपदा, अड़चन आ जाव त घबराये क नाहीं चाही.. का पता ऊ आगे कवनों सुख क तैयारी होत होखे.
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