बेमौसम बरसात भा हँसुआ का बिआह में खुरपी के गीत. दिवाली का मौका पर फुलझरी पटाखा का जगहा कादो पानी क खेल होखत बा, जेकरे देखीं उहे केहू ना केहू पर अछरंग लगावे में लागल बा. अछरंग लांछन के कहल जाला, केहू पर दोस लगवला के अछरंग लगावल कहल जाला. एह में रंग के मतलब त एकदम साफ बा बाकिर अछ का ह? ओछ के बिगड़ल रूप ह अछ. ओछ माने घटिया, कमतर, छोटहन आ जब अछ जान गइनी त अछरंग के मतलब अपने साफ हो जाई. हालांकि बदरंग के बदो के मतलब कुछ कुछ अइसने होला. बद माने खराब, नामे नाम कि बदनामे नाम. बदनामीओ से नाम होला एह बात के नेतवन आ अभिनेतवन से अधिका केहू ना जाने. ओह लोग के चरचा में रहे के होला आ चरचा में रहे ला जरूरी नइखे कि हमेशा बढ़िया चरचा होखो. खराबो चरचा से मैदान में बनल रहे के मौका बनल रहेला आ आजु ना त काल्हु सामने वाला के पटके के मौका मिले के गुंजाइश होला. एहसे आजकाल्हु अछरंग के आनन्द नेतवा सब जम के उठावत बाड़े. आ एहमें जान लिहल जरूरी बा कि बदरंग आ अछरग मे फरक होला. बदरंग छोड़ावल जा सकेला अछरंग ना. आ रंग के बात करीं त सतरंग आ नौरंग के चरचा उठिए जाई. हो सकेला कि रउरो गाँव जवार में कवनो ना कवनो नवरंगा बाड़ी होखो. नवरंग नयका रंग से ना नौ रंग से बनेला. जवना बगइचा में नौ रंग के पेड़ फल होखत होखे ओकरा के नौरंगा बाड़ी कहल जाला. आ सतरंगी इन्द्रधनुष होला. सात रंग से बनल सतरंगी. हालांकि एकरंगा लाल कपड़ा के कहल जाला कवनो एक रंग के ना. हालांकि एक रंग के बहुते कुछ होला, उजर, करिया, हरियर, पियर बाकि एकरंगा माने लाल. दोसर कुछ ना.

हँ त बात होत रहुवे अछरंग के. आ ओह पर आइल रहे ओछ. ओछ माने खराब होखल जरूरी नइखे. ओछ पद माने नीचे के पद. ओछ कद माने छोट कद. बाकिर जरूरी नइखे कि ओछ से ओछ ना होखे. एक से एक ओछो से ओछ आदमी भेंटात रहेलें. कहल मुश्किल होला कि केकरा के ओछ मानल जाव. आजु देस समाज के हालात कुछ कुछ अइसने हो गइल बा. एक से एक ओछ नेतवन में हाराबाजी लागल बा कि के कतना ओछ बा. सभे जतावे बतावे में लागल बा कि देखऽ फलनवाँ हमरो से ओछ निकललें आ तू हमरे के ओछ कहत रहुवऽ.

समय समय पर बड़का नेतवन के बयानो एक से एक ओछ निकल आवेला. छोटका नेता के बयान ओछ निकले के अनेसा कम होला बड़कन के बेसी. काहें कि बड़का नेतवन के बयान भा भाषण दोसर केहू लिखेला आ सामने वाला त बस ओकरा के पढ़ के सुना देला. अइसने एगो बयान पिछला दिने सुने के मिलल रहे कि पइसा फेंड़ पर ना फरे. बहुते चरचा भइल रहे ओह बयान के. लोग तंज कसे कि हँ पइसा फेंड़ पर ना फरे ऊ त स्पेक्ट्रम का तरंग पर, कोयला के खदान में, राशन का दोकान में फरत रहेला. बाकिर ठीक से देखीं त पइसा फेंड़ो पर फरेला. नवरात में फल के खरीदारी करत ई बात साफ हो गइल कि ई फल ना ह सोझ पइसा ह जवन केहू का फेंड़ पर फरल होखी. नवरात भुला गइल होखीं त छठ परब आवते बा. देख लेब. अब ई मत पूछीं कि फल के दाम खातिर परबे तेवहार के मौका काहें? त भाई जी महँगी के हाल अइसने हो गइल बा कि फल या त बेमारी में खाए के बा ना त परब तेवहार का मजबूरी में. आ जान जाईं कि पइसा फेंड़ पर फरे भा मत फरे, बुड़बक फेंड़ पर ना फरऽ सँ ऊ त कवनो ना कवनो गोल के, पार्टी के अध्यक्ष पद पर भा महासचिव पद पर बइठल मिल जाले सं.

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