Pankaj Praveenसिर्फ एक सवाल. आज ले इहाँके (कल्पना जी के) भोजपुरी बहुत कुछ दिहलसि लेकिन इहाँके भोजपुरी खातिर का कइले बानी, जे लिखात बा की “संगीत के दुनिया के कुछ लोग के लागल कि दोसरा भाषा, दोसरा प्रान्त से आ के एगो गायिका भोजपुरी के कोकिला कइसे बन जाई ? हमनी का बने देब जा, तब नू. कल्पना के पुतला जरावल गइल. हर तरह से ओकर आलोचना कइल गइल. बाकिर सब कुछ तथ्य का आधार पर ना हो के अपना अपना विचार का मुताबिक”

एह बात से त सिर्फ एक ही चीज साबित होत बा की “भोजपुरी में अश्लीलता आ असंस्कारी चीजन के बिरोध करे वाला भोजपुरिया लोग बेवकूफ बा और और सिर्फ इहेंके महान बानी. इहाँके आगे भरत शर्मा, मालिनी अवस्थी जइसन लोग के औकात कहाँ बा जे इहाँ जइसन हस्ती के कवनो गलत शब्द पर बिरोध जता सके. अब “भोजपुरी के रानी” से पंगा लेबे के साहस भला केकरा बा ? अपना सच्चाई के एतने साहस रहे त ओह समय मुँह काहे बंद रहे ? आ ओही समय सुर संग्राम से बाहर के रास्ता काहे देखावल गइल रहे ?

जहाँ तक बात भिखारी ठाकुर के बा, त इ सब सिर्फ “सात मुस खाई के बिलार भइली भगतिन” वाला बात बा. जे भोजपुरी में इहाँके गिरत लोकप्रियता के सुधारे खातिर पब्लिसिटी खातिर समाचार बा. काहे की एकरा से पहिलहू गंगा जी पर कुछ अभियान चलल रहे जेकर आज ले कुछ अता पता नइखे. इहाँके जवन लेटेस्ट अलबम भोजपुरी के बा ओकर नाम बा “ए राजा, कहs त हम चढ़ि जाईं.”

हम स्पष्ट कइल चाहब की हमार कल्पना से व्यक्तिगत बिरोध नइखे. लेकिन इहाँके पास भगवान के दिहल सबसे ख़ूबसूरत आवाज के भोजपुरी में गलत इस्तेमाल के बा.

हम निहोरा कइल चाहब अंजोरिया के सम्पादक जी से की लोग भोजपुरी वेबसाइट पर भोजपुरी खातिर दिल से आवेला दिमाग से ना. एह से भोजपुरी में कुछऊ प्रकाशित करे से पहिले एक बार बिचार कर लीं आ एह जगह के फ्री में कोई के परसनल प्रोमोशन के अड्डा मति बने दी. ना त काल्हु जब भोजपुरियन के नवका पीढ़ी हिसाब मांगी त रउवा जबाब का देहब ?

-पंकज प्रवीण


पंकज जी के टिप्पणी कल्पना वाला लेख पर मिलल बा. टिप्पणी धारदार लागल से सोचनी कि एकरा के प्रमुखता दिहल जरुरी बा. एहसे एह टिप्पणी के एगो स्वतंत्र लेख के दर्जा दे दिहल गइल बा.

– संपादक

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One thought on “त ओह समय मुँह काहे बंद रहे ?”
  1. एमे कवनो शक नईखे की कल्पना एगो बेहतरीन गायिका हई ,बाकी बात त ई बा की एसे पहिलहूँ 2 साल पहिले तक भी उनकर अईसन एलबम आईल रहलन स ,तब कहाँ गईल रहे विरोध , कहल जाला कि “जब जागऽ ,तबे सवेरा”. हमके लागता की कल्पना जी आपन आवाज के गलत दुरपयोग कर रहल बाङी , ई नवका पिढी के लोग जे अश्लिल गाना के बजार बनावत बा ,उहो लोग के साफ सुथरा गाना बनावे के चाही ।

    उ लोग के ध्यान रखे के चाही कि जवन समाज उनहन लोगन के उपर चढवले बा उहे ओह लोग के अर्श से फर्श तक के रास्ता देखा सकेला ।

    पंकज जी राऊर नवका एलबम के गाना सुन के दिल गदगदा गईल बा ।

कुछ त कहीं......

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